गुरु के बिना जीवन की कल्पना भी अधूरी है।
गुरु पूर्णिमा का त्योहार हिन्दुओं के साथ साथ , बौद्ध धर्म और जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। भगवान से भी बड़ा दर्जा गुरु को दिया गया है। गुरु के बिना जीवन की कल्पना भी अधूरी है। हिन्दू धर्म के अनुसार , बृहस्पति देव सभी देवताओं और ग्रहों के गुरु हैं। एक…
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दक्षिण मुखी प्लॉट्स के लिए वास्तु
दक्षिण मुखी प्लाट में मुख्य द्वार आग्नेय कोण में बनाना वास्तु की दृष्टि में उचित माना गया है। उत्तर तथा पूर्व की तरफ ज्यादा व पश्चिम व दक्षिण में कम से कम खुला स्थान छोड़ा गया है तो भी दक्षिण का दोष कम हो जाता है। ऐसे प्लाट में छोटे पौधे पूर्व-ईशान में लगाने से भी दोष कम होता है। वास्तु एक्सपर्ट्स …
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हमें नाज है : अर्चिता भटनागर
Bhilwara भीलवाड़ा , 11 जुलाई ( कायस्थ टुडे) । भीलवाडा की अर्चिता भटनागर ने कायस्थ समाज का गोैरव बढ़ाया है । 32 वर्षीय डाॅ. अर्चिता भटनागर ने अपनी सह लेखिका के साथ, सेकंड ईयर बी.टैक. में अध्ययन के लिए एक टैक्स्ट बुक "कंप्यूटर  आर्किटेक्चर"  पब्लिश करवाई। उक्त किताब को अन्य सहित उत्तर प्र…
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कायस्थ एकता मंच महिला प्रकोष्ठ का गठन
Jaipur जयपुर, 7 जुलाई  (कायस्थ टुडे) । श्रीमती रूचि कुलश्रेष्ठ और श्रीमती अर्चना कुलश्रेष्ठ को  एकता मंच  महिला प्रकोष्ठ की प्रभारी और सह प्रभारी के बतौर शपथ ली ।   कायस्थ प्रगतिशील विचारधारा की प्रतीक श्रीमती प्रमिला माथुर ने विगत दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में श्रीमती रूचि कुलश्रेष्ठ को प्रभारी, …
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मुंशी प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान
Jaipur जयपुर, 7 जुलाई ( कायस्थ टुडे) । अखिल भारतीय कायस्थ महासभा राजस्थान ने कायस्थ विभूति कायस्थ रत्न मुंशी प्रेमचंदजी के लेखन पर कायस्थजनों से सशुल्क रचनाएं आंमत्रित की है ।    सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों को Munshi- Premchand -Sahitya- Ratna- Awardमुंशी प्रेमचंद जी के जन्मोत्सव पर नगद पुरस्कार, स्मृत…
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सूखा, तपता पर्वत लेकिन...........डा. ब्रिजेश माथुर
ग़ज़ल ...   सूखा , तपता   पर्वत   लेकिन , कुछ तो अच्छा था उसमें , ढ़ूंढ़ा   तो   मीठे   पानी   का   निकला   इक   सोता उसमें।   बचपन    से   देखी   जो   हमने , एक   हवेली   खंडर   सी , आज   खुदाई   में   निकला   है , चांदी   औ   सोना   उसमें।   हर   घर में   बाग़ीचा अपना , कुछ   …
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मजबूरियाँ हमें तड़पाती कभी-कभी........रंजना माथुर
ग़ज़ल       मजबूरियाँ हमें तड़पाती कभी - कभी।   लाचारियाँ फितरत दिखाती कभी - कभी।     है दाग़ इस जहान गरीबी मेरे ख़ुदा   उसकी फुगां ए भूख रुलाती कभी - कभी।       उजड़ा चमन उदास है बेजान ठूंठ सा ,   इक नूर ए गुल बाग खिलाती   कभी - कभी।   …
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