आज के 5 -6 दशक पूर्व तक सनातन धर्म में विशेष कर श्री चित्रगुप्त परिवारों में ऐसी परंपरा एवं मान्यताएं प्रचलित थी की परिवार में बच्चे के जन्म होने के बाद एक निश्चित अवधि में उसकी जीभ पर शहद से ओम शब्द लिखा जाता था। हथेली में हल्दी की गांठ पकडाते थे अथवा हल्दी से हथेली पर जय श्री चित्रगुप्त भगवान लिखकर स्वास्तिक चिन्ह बनाते थे ।इस मौके पर धार्मिक आयोजन भजन कीर्तन और भगवान गणेश वंदन के साथ-साथ भगवान श्री चित्रगुप्त जी की कथा आरती का आयोजन रखा जा कर घर के पितृ देवों का पूजन करने का चलन प्रचलित था।
इस चलन के
पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ
वैज्ञानिक कारण भी होते
थे। अब यह परंपराएं
धीरे-धीरे लुप्त हो
गई है। हल्दी को
अति शुभ माना गया
है हल्दी एंटीसेप्टिक होती है। रोगों
से दूर रखती है
।स्वास्थ्य के लिए बहुत
लाभ कारी है ।वहीं
शहद और गंगाजल मानव
शरीर के लिए अमृत
के समान है ।मानव
रक्त के निर्माण के
साथ-साथ उसे हर
प्रकार से नियंत्रण में
भी रखता है। जिससे
शारीरिक-मानसिक बौद्धिक विकास होता है। वही
शरीर निरोगी रहता है। शहद
के सेवन से जीवन
पर्यंत पाचन तंत्र दुरुस्त
रहता है।
संसार में बच्चों के
नए जीवन आगमन के
साथ पर्यावरण में फैले हुए
अनेकों बैक्टीरिया को आयुर्वेद में
शहद के सेवन से
समाप्त किया जाता है।
ओम और श्री शब्द
बौद्धिक मानसिक शारीरिक विकास के मूल मंत्र
है ।उनके उपयोग से सिर्फ और
सिर्फ विकास होता है। जब
आप उच्च स्वर में
ओम और श्री शब्द
का उच्चारण करते हैं तो
आप पाएंगे कि आपकी नाभि
तंत्र और सातों चक्र
मस्तिष्क क्रियाशील होकर ऊर्जावान हो
गए हैं।
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सकते है ।
आज आवश्यकता है हमारी पुरानी
मान्यताओं को यथावत जिंदा
रखकर उसे निरंतर प्रचलन
में रखने की। घर
में जब श्री चित्रगुप्त
जी की कथा आरती
होगी तो नई पीढ़ी को
सनातन और अपने समाज
धर्म के अनुसार संस्कारवान
बना सकते हैं। जिस
से न ई पीढ़ी में
भगवान श्री के प्रति एक सकारात्मक सशक्त
भावनात्मक जुड़ाव होगा।
वे भगवान की भक्ति की
और आकर्षित होंगे।
।और
ऊर्जा से जीवन प्राप्त
होता है। जीवन से
सभी प्रकार के सुख प्राप्त
होते हैं।इसलिए भगवान श्री चित्रगुप्त जी
की नियमित रूप से पूजा और मान्यता के
अनुसार पूर्व प्रचलित परंपराओं का निरंतर चलन
में रहना आवश्यक है
।यह हमारे कुल भगवान की
परंपराओं का सम्मान भी
है।
जो करें- हो निहाल।इसी
का नाम -श्री चित्रगुप्त
भगवान ।।
— हर
प्रसाद माथुर