अनिल माथुर
वरिष्ठ पत्रकार
ईगों एक ऐसा धीमा जहर है जो धीरे धीरे अपना असर दिखाता है ओर एक समय ऐसा आता है जब चाहते हुए भी जहर का असर कम नहीं होता। इसका खामियाजा बेवजह नौजवानों को भुगतना पडता है । कमाबेश यहीं स्थिति राजस्थान में कायस्थ समाज की हो रहीं है । इगों के कारण ना प्रशासन में ओर ना राजनीतिक दलों में कायस्थ समाज का धणी धौरी है । मुददा चाहे प्रदेश की राजधानी जयपुर में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मूर्ति प्रमुख चौराहे पर स्थापित करने का रहा हो या शहीद मेजर आलोक माथुर की मूर्ति स्थापित करने का हो या फिर सत्ता में भागीदारी का रहा हो । सिक्किम के राज्यपाल श्री ओम प्रकाश माथुर समाज के बूते नहीं बल्कि अपनी कार्यशैली के बल पर अपना स्थान बनाया है ।
विगत सालों में कायस्थ समाज में विभिन्नता को एकजूट करने के अनेक प्रयास हुए लेकिन उनकी हवा ही निकली । ताजा मुददा है कायस्थ समाज के दो राष्ट्रीय संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनके पदाधिकारी 27 जुलाई को जयपुर में अपनी प्रदेश इकाईयों की बैठक को सम्बोधित करते हुए समाज को एकजुट करने की अपील कर रहे थे लेकिन मजे की बात है कि दोनों राष्ट्रीय अध्यक्षों ने एकजुटता को लेकर आपस में बातचीत करना तो दूर मिले तक नहीं जबकि दोनों राष्ट्रीय अध्यक्ष जयपुर में कुछ किलोमीटर की दूरी पर बैठकों में भाग ले रहे थे । मैं बात कर रहा हूॅ अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.अनूप श्रीवास्तव और राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजीनियर मयंक श्रीवास्तव की ।
डॉ अनूप श्रीवास्तव ने तो प्रदेश के कायस्थ समाज को एक नहीं होने के लिए तंज कसते हुए कहा राजस्थान में शिवचरण माथुर दो बार मुख्यमंत्री रहे, मथुरा दास माथुर सरकार में रहे बावजूद मौजूदा समय समाज की यह स्थिति है कि ना मंत्री है ना सांसद है और ना एमएलए । आप एकजुट हो ताकि सत्ता में समाज को भागीदारी मिल सके । कायस्थ समाज को एकजुट करने का आह्वान करने वाले राष्ट्रीय नेता जी आप स्वंय अपने स्तर पर तो एकजुट हो जाओं ताकि यह सन्देश निचले स्तर तक पहुंचे और एका हो जाए । आप अपने समकक्ष पदाधिकारी से एक ही शहर में होने के बावजूद संगठन को लेकर चर्चा करना तो दूर कम से कम हालचाल ही जान लेते ।
कायस्थ समाज के दो प्रमुख संगठन स्तर के मुखिया,एक ही दो अलग अलग स्थानों पर कायस्थ समाज को एकजुट करने का आहवान किया लेकिन दोनों अध्यक्षों ने दूरियां बना रखाी है , क्या ऐसे होगा समाज एकजुट । एकजुटता के लिए ईगों छोडना पडता है जो हाल राष्ट्रीय स्तर पर है उससे ज्यादा बूरा हाल राजस्थान में कायस्थ समाज के मुखियाओं का है । जब राष्ट्रीय स्तर के समाज के मठाधीश समाज की भलाई, समाज को राजनीति में उचित स्थान दिलाने, बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने या आर्थिक रूप से कमजोर समाज के लोगों के बच्चों को शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे से बात नहीं कर रहे है तो प्रदेश अध्यक्षों से तो उम्मीद करना बेमानी है ।हाल यह है कि कायस्थ समाज के अनगिनत संगठनों की प्रमुख कुर्सी पर बिराजे चित्रांशजन ही सबसे बडी बाधा बने हुए है । इनकी कार्यप्रणाली ओर विशेष रूप से ईगों के कारण समाज को जो स्थान मिलना चाहिए उससे समाज कोसों दूर है । समय आ गया जब चित्रांश समाज के युवाओं को ऐसे संगठनों के मुखियाओं को एक स्थान पर बैठाकर कायस्थ समाज को मजबूती देने के लिए एकजुट करे या फिर इस काम में बाधक बन रहे पदों पर सालों से आसीन बुजुर्गो को अनुरोध मान मनुहार कर पद छोडने के लिए तैयार करे और युवा नेतृत्व कुर्सी संभाले । क्या डॉ अनूप श्रीवास्तव को यह जानकारी नहीं थी कि दूसरे संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष मयंक श्रीवास्तव जयपुर में ही बैठक कर रहे है ।
दोनों राष्ट्रीय अध्यक्षों को एक दूसरे के जयपुर में होने की सूचना होने के बावजूद भी दोनों अध्यक्षों ने एक दूसरे से बात करने की जरूरत महसूस नहीं की । मान भी ले कि दोनों अध्यक्षों को पहले से सूचना नहीं थी लेकिन जब राजस्थान के चित्रांश समाज के एक पदाधिकारी दोनों संगठनों की बैठक में मौजूद रहे तो क्या उन्होने यह जानकारी साझा नहीं की होगी , यह सोचने समझने की बात है । हो सकता है कि चित्रांश समाज के कुछ पदाधिकारियों या सदस्यों को यह पढना अच्छा नहीं लग रहा होगा लेकिन वो खूद भी आत्मचिंतन करेंगे तो शायद वो भी लिखी गई बातों से सहमत हो जाएंगे । सीधा से प्रश्न है जब चित्रांश समाज के दो दिग्गज संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने लबाजमें के साथ एक ही समय जयपुर में थे तो क्या उन्हे समाज हित में एक दूसरे से बातचीत नहीं करनी चाहिए थी । हो सकता है कि दोनों राष्ट्रीय अध्यक्षों के बीच निजी तोैर पर दूरी होगी लेकिन जब समाज संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे है तो अपने निजी स्वार्थ को तिलाजंलि देनी चाहिए ।
यदि ऐसा नहीं कर सकते है तो उन्हे युवा को लाना होगा ।समाज एकजुटता दिखायेंगे तो इतिहास के पन्नों पर समाज उन्हे याद करेगा वर्ना समाज इन प्रमुखों को कभी माफ नहीं करेगा ।समय अब भी है समाज हित में अपने निजी स्वार्थ को अपने अपने घरों पर छोड कर समाज हित के लिए एकजुटता से कार्य करे ताकि समाज को खोई हुई विरासत , पहचान फिर से मिल सके ।