कायस्थों के ऋषि गोत्र

मूलतः कायस्थों के ऋषि गोत्र ये हैं :-
कश्यप, वत्स, वशिष्ठ, शांडिल्य, हुलस, हर्षल, भारद्वाज, अत्रि। 


हिन्दू मिताक्षरा के अनुसार सगोत्र की मान्यता सात पीढ़ी तक रहती है और ऋषियों का अवसान हुये कई हजार वर्ष बीत गये हैं तो अब यह सगोत्र नहीं माना जायेगा। ये सब ऋषि भी मूलतः बृह्मा व मनु से उत्पन्न हुये हैं उस दृष्टि से तो हम सब के पिता एक ही थे। 


जहाँ तक विवाह संबंधों की बात है तो वहाँ ऋषि गोत्र जिसे कुल गोत्र भी कहा गया है,नहीं अपितु पिंड गोत्र या परिवार गोत्र जिसे हम अल्ल कहते हैं को मिलाया जाता है ताकि परिवार समूह में अंतर जान सकें और ऐक ही परिवार समूह में विवाह न हो जाये।