आपके वंशज पहले कहाँ के राजा थे ??



Kayastha कायस्थो का ननिहाल : नागवंश 


भगवान Chitragupta चित्रगुप्त की दो शादियाँ हुईं,जिनसे 12 पुत्र थे और पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि कायस्थों की  ननिहाल Nagvansh नागवंश मानी जाती है।


उनकी  पहली Wife पत्नी Suryadakshina सूर्यदक्षिणा /नंदनी जो ब्राह्मण कन्या थी, इनसे 4 Son पुत्र हुए जोBhanu,  भानू,Vibhanu, विभानू, Vishwabhanu विश्वभानू और Virbhanu वीर्यभानू कहलाए।  and Virbhanu


दूसरी पत्नी  Airavati एरावती / Shobhavati शोभावति नागवन्शी क्षत्रिय कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए जो Charu चारु, Chitcharu चितचारु  Matibhan, मतिभान, suchaaru सुचारु, Charun चारुण,Himwan  हिमवान,Chitra  चित्र,और atindriy अतिन्द्रिय कहलाए। जिसका उल्लेख Ahilya अहिल्या, Kamadhenu कामधेनु, Dharmashastras धर्मशास्त्र एवं Puranas पुराणों में भी दिया गया है |


श्री चित्रगुप्तजी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि Kayastha कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है | 


माता सूर्यदक्षिणा / नंदिनी ( श्राद्धदेव की कन्या ) के चार पुत्र काश्मीर के आस -पास जाकर बसे तथा ऐरावती / शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास Bihar बिहार,Odisa  उड़ीसा, तथा Bangal बंगाल में जा बसे | बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था, पद्म पुराण में इसका उल्लेख किया गया है |


माता सूर्यदक्षिणा / नंदिनी के पुत्रों का विवरण


1 - भानु (   Srivastava श्रीवास्तव ) - उनका राशि नाम धर्मध्वज था | चित्रगुप्त जी ने श्री श्रीभानु को श्रीवास (श्रीनगर Shree Nagar ) और कान्धार के इलाके में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था|


 उनका विवाह नागराज वासुकी की पुत्री padmini पद्मिनी से हुआ | उस विवाह से श्री Devdutt देवदत्त और श्री Ghanshyam घनश्याम नामक दो दिव्य पुत्रों की उत्पत्ति हुई | 


श्री देवदत्त को कश्मीर का एवं श्री घनश्याम को सिन्धु नदी के तट का राज्य मिला | श्रीवास्तव 2 वर्गों में विभाजित हैं यथा खर एवं दूसर| कुछ अल इस प्रकार हैं - वर्मा, सिन्हा, अघोरी, पडे, पांडिया,रायजादा, कानूनगो, जगधारी, प्रधान, बोहर, रजा सुरजपुरा,तनद्वा, वैद्य, बरवारिया, चौधरी, रजा संडीला, देवगन Verma, Sinha, Aghori, Padde, Pandiya, Raizada, Kanungo, Jagdhari, Pradhan, Bohar, Raza Surajpura, Tandwa, Vaidya, Barwaria, Chaudhary, Raza Sandila, Devgan इत्यादि|


2 - विभानू (sooryadhvaj सूर्यध्वज ) - उनका राशि नाम Shyam Sunder  श्यामसुंदर था | उनका विवाह देवी मालतीMalti  से हुआ | महाराज Chitragupta चित्रगुप्त ने श्री विभानु को Kasmir  काश्मीर के उत्तर क्षेत्रों में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा | चूंकि उनकी माता दक्षिणा सूर्यदेव की पुत्री थीं,तो उनके वंशज सूर्यदेव का चिन्ह अपनी पताका पर लगाये और सूर्यध्व्ज नाम से जाने गए | अंततः वह मगध में आकर बसे|

3 - विश्वभानू ( Balmiki बाल्मीकि ) - उनका राशि नाम Din dayal दीनदयाल था और वह devi देवी shakambhare शाकम्भरी की आराधना करते थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने उनको चित्रकूट और नर्मदा के समीप वाल्मीकि क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था | श्री विश्वभानु का विवाह नागकन्या देवी बिम्ववती से हुआ | यह ज्ञात है की उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नर्मदा नदी के तट पर तपस्या करते हुए बिताया | इस तपस्या के समय उनका पूर्ण शरीर वाल्मीकि नामक लता से ढका हुआ था | उनके वंशज वाल्मीकि नाम से जाने गए और वल्लभपंथी बने | उनके पुत्र श्री Chandrakant चंद्रकांत Gujrat गुजरात में जाकर बसे तथा अन्य पुत्र अपने परिवारों के साथ उत्तर भारत में गंगा और हिमालय के समीप प्रवासित हुए | आज वह गुजरात और Maharashtra महाराष्ट्र में पाए जाते हैं | गुजरात में उनको Vallabhi Kayastha"वल्लभी कायस्थ" भी कहा जाता है |


4 - वीर्यभानू (Asthana अष्ठाना) - उनका राशि नाम माधवराव था और उन्हीं ने देवी सिंघध्वनि से विवाह किया | वे देवी शाकम्भरी की पूजा किया करते थे| महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री वीर्यभानु को आधिस्थान में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा | उनके वंशज अष्ठाना नाम से जाने गए और रामनगर- वाराणसी के महाराज ने उन्हें अपने आठ रत्नों में स्थान दिया | आज अष्ठाना उत्तर प्रदेश के कई जिले और बिहार के सारन, सिवान , चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा और भागलपुर Saran, Siwan, Champaran, Muzaffarpur, Sitamarhi, Darbhanga and Bhagalpur क्षेत्रों में रहते हैं |Madhya pradesh  मध्य प्रदेश में भी उनकी संख्या ध्यान रखने योग्य है | वह ५ अल में विभाजित हैं | 


माता ऐरावती / शोभावति के पुत्रों का विवरण


1- चारु ( Mathur माथुर )- वह गुरु मथुरे के शिष्य थे | उनका राशि नाम dhurandhar धुरंधर था और उनका विवाह देवी पंकजाक्षी से हुआ | वह देवी दुर्गा की आराधना करते थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री चारू को Matura  मथुरा क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था| उनके वंशज माथुर नाम से जाने गाये |उन्होंने राक्षसों (जोकि वेद में विश्वास नहीं रखते थे ) को हराकर मथुरा में राज्य स्थापित किया | इसके पश्चात् उनहोंने आर्यावर्त के अन्य हिस्सों में भी अपने राज्य का विस्तार किया |माथुरों ने मथुरा पर राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं जैसे इक्ष्वाकु, रघु, दशरथ और राम के दरबार में भी कई पद ग्रहण किये | माथुर 3 वर्गों में विभाजित हैं यथा देहलवी,खचौली एवं गुजरात के कच्छी | उनके बीच 84 अल हैं| कुछ अल इस प्रकार हैं- कटारिया, सहरिया, ककरानिया, दवारिया,दिल्वारिया, तावाकले, राजौरिया, नाग, गलगोटिया, सर्वारिया,रानोरिया Kataria, Sahariya, Kakaraniya, Davariya, Dilwaria, Tawakale, Rajouria, Nag, Galgotia, Sarwaria, Ranoriya इत्यादि| इटावा Itawa के मदनलाल तिवारी द्वारा लिखित मदन कोश के अनुसार माथुरों ने पांड्या राज्य की स्थापना की जो की आज के समय में मदुरै, त्रिनिवेल्ली जैसे क्षेत्रों में फैला था| माथुरों के दूत रोम के ऑगस्टस कैसर के दरबार में भी गए थे |


2- सुचारु ( gaurगौड़) - वह गुरु वशिष्ठ के शिष्य थे और उनका राशि नाम धर्मदत्त था | वह देवी शाकम्बरी की आराधना करते थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री सुचारू को गौड़ क्षेत्र में राज्य स्थापित करने भेजा था | श्री सुचारू का Marrige विवाहNagraj  नागराज वासुकी की पुत्री देवी मंधिया से हुआ | गौड़ 5 वर्गों में विभाजित हैं : 1. खरे 2. दुसरे 3. बंगाली 4. देहलवी 5. वदनयुनि | khare . dusare 3. bangale 4. dehalave 5. vadanayuniगौड़ कायस्थ को 32 अल में बांटा गया है |गौड़ कायस्थों में महाभारत के भगदत्त और कलिंग के रुद्रदत्त प्रसिद्द हैं |


3- चित्र ( चित्राख्य ) ( Bhatnagar  भटनागर ) - वह गुरू भट के शिष्य थे |उनका विवाह देवी भद्रकालिनी से हुआ था | वह देवी जयंती की अराधना करते थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री चित्राक्ष को भट देश और Malva  मालवा में भट नदी के तट पर राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था | 


उन्होंने Chitor चित्तौड़ एवं Chitracot चित्रकूट की स्थापना की और वहीं बस गए | उनके वंशज भटनागर के नाम से जाने गए | भटनागर 84 अल में विभाजित हैं | कुछ अल इस प्रकार हैं- दासनिया, भतनिया, कुचानिया, गुजरिया,बहलिवाल, महिवाल, सम्भाल्वेद, बरसानिया, कन्मौजिया Dasniya, Bhatniya, Kuchania, Gujariya, Bahliwal, Mahiwal, Sambhalveda, Barsaniya, Kanmaujiaइत्यादि| भटनागर उत्तर भारत में कायस्थों के बीच एक आम उपनाम है |

4- मतिभान ( हस्तीवर्ण ) ( Saxena सक्सेना ) - माता शोभावती (इरावती) के तेजस्वी पुत्र का विवाह देवी कोकलेश से हुआ | वे देवी शाकम्भरी की पूजा करते थे | चित्रगुप्त जी ने श्री मतिमान को शक् इलाके में राज्य स्थापित करने भेजा | उनके पुत्र एक महान योद्धा थे और उन्होंने आधुनिक काल के कान्धार और यूरेशिया भूखंडों पर अपना राज्य स्थापित किया | चूंकि वह शक् थे और शक् साम्राज्य से थे तथा उनकी मित्रता  Sen सेन साम्राज्य से थी, तो उनके वंशज शकसेन या सकसेनi कहलाये|

आधुनिक इरान Irin का एक भाग उनके राज्य का हिस्सा था| आज वे कन्नौज, पीलीभीत, बदायूं, फर्रुखाबाद, इटाह,इटावाह, मैनपुरी, और अलीगढ Nanauj, Pilibhit, Badaun, Farrukhabad, Etah, Etawah, Mainpuri, and Aligarhमें पाए जाते हैं| सक्सेना 'खरे' और 'दूसर' में विभाजित हैं और इस समुदाय में 106 अल हैं |कुछ अल इस प्रकार हैं- जोहरी, हजेला, अधोलिया, रायजादा, कोदेसिया, कानूनगो,बरतरिया, बिसारिया, प्रधान, कम्थानिया, दरबारी, रावत, सहरिया,दलेला, सोंरेक्षा, कमोजिया, अगोचिया, सिन्हा, मोरिया, इत्यादिकमोजिया, अगोचिया, सिन्हा, मोरिया,Johri, Hajela, Adholiya, Raizada, Kodesiya, Kanungo, Bartaria, Bisaria, Pradhan, Kamthania, Darbari, Rawat, Sahariya, Dalela, Sonreksha, Kamojia, Agochiya, Sinha, Moria, Adikamojia, Agochiya, Sinha, Moria, इत्यादि| 


5- हिमवान (Ambastha अम्बष्ठ ) - उनका राशि नाम सरंधर था और उनका विवाह देवी भुजंगाक्षी से हुआ | वह देवी Davi Amba mata अम्बा माता की अराधना करते थे | Girnar गिरनार औरKathyvar  काठियवार के अम्बा-स्थान नामक क्षेत्र में बसने के कारण उनका नाम अम्बष्ट पड़ा | 


श्री हिमवान की पांच दिव्य संतानें हुईं : श्री नागसेन , श्री गयासेन, श्री गयादत्त, श्री रतनमूल और श्री देवधरShri Nagsen, Shri Gayasena, Shri Gayadatta, Shri Ratanmool and Shri Deodhar | ये पाँचों पुत्र विभिन्न स्थानों में जाकर बसे और इन स्थानों पर अपने वंश को आगे बढ़ाया | इनका विभाजन : नागसेन २४ अल , गयासेन ३५ अल, गयादत्त ८५ अल,रतनमूल २५ अल, देवधर २१ अल में है | अंततः वह पंजाब में जाकर बसे जहाँ उनकी पराजय सिकंदर के सेनापति और उसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य Chandragupta Mauryaके हाथों हुई| अम्बष्ट कायस्थ बिजातीय विवाह की परंपरा का पालन करते हैं और इसके लिए "खास घर" प्रणाली का उपयोग करते हैं | इन घरों के नाम उपनाम के रूप में भी इस्तेमाल किये जाते हैं | 


ये "khas ghaखास घर"(जिनसे मगध राज्य के उन गाँवों का नाम पता चलता है जहाँ मौर्यकाल में तक्षशिला से विस्थापित होने के उपरान्त अम्बष्ट आकर बसे थे) | इनमें से कुछ घरों के नाम हैं- भीलवार, दुमरवे, बधियार, भरथुआर, निमइयार, जमुआर,कतरयार पर्वतियार, मंदिलवार, मैजोरवार, रुखइयार, मलदहियार,नंदकुलियार, गहिलवार, गयावार, बरियार, बरतियार, राजगृहार,देढ़गवे, कोचगवे, चारगवे, विरनवे, संदवार, पंचबरे, सकलदिहार,करपट्ने, पनपट्ने, हरघवे, महथा, जयपुरियार .Bhilwar, Dumarwe, Badiyar, Bharthuar, Nimaiyar, Jamuar, Katarayar Parvatiyar, Mandilwar, Majorwar, Rukhiyar, Maldahiar, Nandkuliyar, Gahilwar, Gayawar, Bariyar, Bertiyar, Rajgrihar, Dedhgwe, Kochgwe, Panchbarapat, Samadwar, Vihar, , Panpatne, Harghave, Mahatha, Jaipuriar..आदि|


6- चित्रचारु ( Nigam निगम) - उनका राशि नाम सुमंत था और उनका विवाह अशगंधमति से हुआ | वह देवी दुर्गा की अराधना करते थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री चित्रचारू को महाकोशल और निगम क्षेत्र (सरयू नदी के तट पर) में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा | 


उनके वंशज वेदों और शास्त्रों की विधियों में पारंगत थे जिससे उनका नाम निगम पड़ा |आज के समय में कानपुर, फतेहपुर, हमीरपुर, बंदा, जलाओं,महोबा Kanpur, Fatehpur, Hamirpur, Banda, Jalaon, Mahoba में रहते हैं | वह 43 अल में विभाजित हैं | कुछ अल इस प्रकार हैं- कानूनगो, अकबरपुर, अकबराबादी, घताम्पुरी,चौधरी, कानूनगो बाधा, कानूनगो जयपुर, मुंशी Kanungo, Akbarpur, Akbarabadi, Ghatampuri, Choudhary, Kanungo barrier, Kanungo Jaipur, Munshiइत्यादि|


7- चित्रचरण (karn कर्ण ) - उनका राशि नाम Damoder  दामोदर था एवं उनका विवाह देवी कोकलसुता से हुआ | वह देवी लक्ष्मी की आराधना करते थे और वैष्णव थे | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री चारूण को कर्ण क्षेत्र (आधुनिक कर्नाटक) में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था | 


उनके वंशज समय के साथ उत्तरी राज्यों में प्रवासित हुए और आज Nepal  नेपाल, Odisa उड़ीसा एवं Bihar बिहार में पाए जाते हैं | उनकी बिहार की शाखा दो भागों में विभाजित है : 'गयावाल कर्ण' – जो गया में बसे और 'मैथिल कर्ण' जो मिथिला में जाकर बसे | इनमें दास, दत्त, देव, कण्ठ, निधि,मल्लिक, लाभ, चौधरी, रंग Das, Dutt, Dev, Gut, Nidhi, Mallick, Labh, Chaudhary, Rang आदि पदवी प्रचलित है|


 मैथिल कर्ण कायस्थों की एक विशेषता उनकी पंजी पद्धति है | पंजी वंशावली रिकॉर्ड की एक प्रणाली है | कर्ण 360 अल में विभाजित हैं | इस विशाल संख्या का कारण वह कर्ण परिवार हैं जिन्हों ने कई चरणों में Sout India दक्षिण भारत से उत्तर की ओर पलायन किया | इस समुदाय का महाभारत के कर्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है |


8- चारुण [श्री अतिन्द्रिय] (Kulshra कुलश्रेष्ठ )- उनका राशि नाम सदानंद है और उन्हों ने देवी मंजुभाषिणी से विवाह किया | वह देवी लक्ष्मी की आराधना करते हैं | महाराज चित्रगुप्त जी ने श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रिय) को कन्नौज क्षेत्र में राज्य स्थापित करने भेजा था| श्री अतियेंद्रिय चित्रगुप्त जी की बारह संतानों में से अधिक धर्मनिष्ठ और सन्यासी प्रवृत्ति वाली संतानों में से थे | उन्हें 'धर्मात्मा' और 'Pandit पंडित' नाम से जाना गया और स्वभाव से धुनी थे | उनके वंशज कुलश्रेष्ठ नाम से जाने गए |आधुनिक काल में वे मथुरा, आगरा, फर्रूखाबाद, इटाह, इटावाह और मैनपुरीMathura, Agra, Farrukhabad, Etah, Etawah and Mainpuri में पाए जाते हैं | कुछ कुलश्रेष्ठ जो की Mata माता nandini नंदिनी के वंश से हैं, Nandigaon नंदीगांव - Bangal बंगाल में पाए जाते हैं |