पर्यावरण संतुलन में आयुर्वेद के उपाय महत्वपूर्ण: डॉ. भटनागर

 

उदयपुर 9 जून(कायस्थ टुडे) राजकीय आयुर्वेद औषधालय, धानमंडी के प्रभारी डॉ. मनोज भटनागर ने कहा कि  भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद पर्यावरण व मनुष्य जीवन को संतुलित बनाए रखने के उपायों से परिपूर्ण हैं ।

 भटनागर ने "पर्यावरण संतुलन में आयुर्वेद की भूमिका" विषय पर विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में औषधालय में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए अपने विचार व्यक्त कर रहे थे । उन्होने कहा कि  उस काल में आयुर्वेद के ऋषि-मुनि अपने आश्रम व वनों में औषधीय पौधों की जानकारी रखते हुए अधिकाधिक मात्रा में उसे विकसित व संरक्षित करने में प्रयासरत रहते थे जिससे पर्यावरण एवं मनुष्य जीवन का संतुलन बना रहता था।

भटनागर ने कहा कि मेवाड़ का वन क्षेत्र अरावली पर्वतमाला प्रचुर मात्रा में वन संपदा से परिपूर्ण है, मगर यहां पहाड़ों, जंगलों,वनसंपदा की निरंतर कटाई एवं मगरा स्नान जैसी कुप्रथा पर समय रहते रोक लगने पर ही तापमान व पर्यावरण में संतुलन हो मनुष्य पीढ़ी को दीर्घ जीवन के लिए बचाया जा सकता है।


 मुख्य अतिथि राजस्थान आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी संघ के पूर्व अध्यक्ष आयुर्वेद सहयोग समिति के डॉ. गुणवंत सिंह देवड़ा ने आयुर्वेदिक विशालकाय पेड़ पौधों के विकास पर जोर देते हुए जैव विविधता उद्यानों के और अधिक विकास की बात कही जिससे पर्यावरण व जीव जंतु तथा वन संपदा द्वारा मानव जीवन के संतुलन में प्रकृति के योगदान को बताया और कहा कि पहाड़ों पर लगी वन औषधियां तलहटी में बसे मानव जीवन को तेज हवा पानी व तापमान से बचाने में समर्थ होते हैं।



विशिष्ट अतिथि मेवाड़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष इतिहासकार प्रोफ़ेसर गिरीश नाथ माथुर ने इतिहास में आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा पर्यावरण को बचाए रखने के उपायों को बताया।

संगोष्ठी संयोजक शिरीष नाथ माथुर ने मानव जीवन सुरक्षा में संतुलित पर्यावरण की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि पहाड़ों की कटाई पर रोक हेतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कड़ाई से पालना हो तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है।

समाजसेवी विनय प्रताप सिंह,कंपाउंडर रूपलाल मीणा, चंचल पुजारी ने भी अपने विचार रखे। संयोजन शिरीष नाथ माथुर ने किया।KAYASTHA TODAY