प्रसंग: श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव
कायस्थ समाज के नेताओं की जिद् की वजह से हमारे आराध्य देव श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव एक दिन नहीं अपनी मर्जी से सुविधानुसार मनाया जा रहा है । श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव को लेकर समाज के व्हाटसअप ग्रुप पर चर्चा हुई ,लेकिन नतीजा सिफर रहा । चित्रांश समाज के एक राष्ट्रीय संगठन ने 11 अप्रैल को देसरे ने 16 अप्रैल को श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव मनाया । एक संगठन अगले महिने श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव मनायेगा । इस बीच अन्य संगठन कौनसी तिथि पर श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव मनाने की घोषणा कर दे भरोसा नहीं । क्यूंकि कायस्थ समाज के संगठनों की गिनती करना ही आसमान से तारे तोडकर लाने जैसा है । स्वंय को अति पढा लिखा, समझदार समाज की श्रेणी में आने वाले समाज में आराध्य देव के प्राकट्योत्सव को लेकर भिन्न मत होना क्या प्रकट करता है । यह कहने की जरूरत नहीं है । और कहना भी नहीं चाहिए । जब आप अपने आराध्य देव के प्राकट्योत्सव को लेकर एकमत नहीं है तो फिर अन्य बातों पर एकमत होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता । यहीं कारण है कि बाते अधिक होती है और काम शून्य ।
कार्यक्रम के दौरान एक होने का लेकर स्टेज से ऐलान होते है या आराध्य देव जी की तस्वीर के सामने कसमें खाई जाती है , जिसकी कुछ समय पहले ही पूजा अर्चना की ।कार्यक्रम खत्म और वायदे कसमें हवा हो जाते है और फिर वहीं टांग खिचाई शुरू । लेकिन कम से कम अपने आराध्य देव के प्राकट्योत्सव को लेकर इस तरह से पेश नहीं आये ,कुछ तो सोचिए ।पढे लिखे समाज के नेता या मठाधीश श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव अलग अलग तिथि पर मनाने को लेकर सर्वसमाज और समाज के युवा वर्ग के सामने इस तरह के उदाहरण पेश नहीं करे ।अच्छा हो सभी संगठनों के नेता कम से कम श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव को लेकर तो एकमत हो जाएं । जिनके पास श्री चित्रगुप्त जी के प्राकट्योत्सव को लेकर इतिहास के पन्ने है या प्रमाणिक सबूत है, लेकर एक तय स्थान पर बैठ कर मंथन करे । एक दिन नहीं दस दिन विचार विमर्श करे ,लेकिन समय तय करे और नतीजे पर पहुंचे । इससे समाज का भी भला होगा और हमारे युवा दिभ्रमित नहीं होंगे, सर्वसमाज में बातचीत का मुददा भी खत्म होगा ।
श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव बार बार मनाना किसी भी तरह से उचित नहीं है ।इससे किसी का भला होने वाला नहीं है । बल्कि एक नयी परम्पराएं शुरू हो रही है , युवा वर्ग समाज के मठाधीशों को कभी माफ नहीं करेगा ।श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव मनाने वाला हर संगठन अपने साथ सैकेडों लोगों के साथ होने का दावा करता है लेकिन असलीयत खूद जानते है ।केवल अपना तंमगा लटकाए रखने के लिए श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव को लेकर दांव लगा रहे है । किसी मुददे पर एकमत हो या नहीं लेकिन कम से कम अपने आराध्य देव श्री चित्रगुप्त जी भगवान के प्राकट्योत्सव को लेकर एक मत होकर समाज और सर्वसमाज के समक्ष एक उदाहरण पेश करे । जिससे साबित हो सके की कायस्थ समाज के नेताओं में ईगों नहीं है ।अभी भी समय है समाज के नेताओं, पदाधिकारियों को श्री चित्रगुप्त जी भगवान का प्राकट्योत्सव को लेकर एकमत होने के लिए अपने ईगों को घर में छोडकर बातचीत के लिए घर की दहलीज से बाहर आए । चित्रांश समाज के संगठनों के नेता बातचीत करे । संवादहीनता खडडे को खाई बना देती है ओर संवाद पहाड को कंकड बना देता है । बातचीत होगी तो नतीजा भी निकलेगा । समाज नेताओं, मठाधीशों को सर माथे पर बिठायेगा की एक ज्वलंत मुददे का हल निकला । एक नयी शुरूआत होगी ।जिसकी आवाज देशभर में गुजेंगी । कदम बढाइए , झीझक क्यूं रहे है । बढाइए कदम , सफलता आपका इंतजार कर रही है । बता दीजिए समाज और सर्वसमाज को , हमारे में ईगों नहीं है। इतिहास आपको याद करेगा वर्ना आप स्वयं को माफ नहीं कर पाएंगे । यह प्रण लिजिए अगले साल राजस्थान में भगवान श्री चित्रगुप्त जी का प्राकट्योत्सव एक दिन , एक स्थान पर मनायेंगे सभी संगठन मिलकर ।कायस्थ टुडे के 16 अप्रैल 2022 से साभार
KAYASTHA TODAY