क्या है ढूंढ जानिएं..........

 



होली पर्व पर ढूंढ व ग़ैर का अपना ही महत्व है। होली पर नवजात शिशु की ढूंढ की परंपरा आज भी बरकरार है।

   नवजात शिशु के घर मीठी पूडिय़ा (हुआरी) बनाई जाती है, रिश्तेदार मिलकर इसको बनाते है। इसमें गुड़ का पानी एवं गन्ने का रस डाला जाता है जिससे वह मीठी होती है। शहरों में होलिका दहन होने के साथ ही उसके चारों ओर नवजात शिशु को पकड़कर उसका मामा एवं माता-पिता साथ में सात चक्कर लगाते है।

ढूंढ का कार्यक्रम होलिका दहन के अगले दिन होता है। उस दिन समाज के सभी जन इकट्ठे होकर  ढोल बजाते हुए खुशी का इजहार करते है, सभी एक-दूसरे के गले मिलकर रंग डालते हुए होली की शुभकामनाएं देते है। जिसके घर नवजात शिशु का जन्म हुआ है उस घर वाले नारियल एवं गुड़ लाकर देते है। जिसे सामूहिक रूप से सभी खाते है। दूसरे दिन धुलंड़ी का पर्व मनाया जात है। 



Mathur माथुर घरानों में गैर खेलने की परंपरा आज भी बनी हुई है। जिसमें  नवजात शिशु के घर पुरूष ढोल एवं महिलाएं युवतियां लेझम लेकर नाचती हुए खुशी का इजहार करती है। उस दिन भी लोगों को मीठी पुडिय़ा, नारियल एवं गुड़ खिलाया जाता है। साभार प्रेम शंकर माथुर, जयपुर KAYASTHA TODAY

कायस्थ टुडे के 16 मार्च 2022 में