कायस्थ टुडे की ओर से बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
योगिता माथुर
इस वर्ष बसंत पंचमी पर सुंदर योग बना है । बुधादित्य एवं सिद्ध योग का सुंदर संयोग की वजह से पूरे दिन अबूझ मुहूर्त है। आज से ऋतुराज बसंत का आगमन हो गयाह है ।
बसंत पंचमी के दिन ही वागदेवी भगवती सरस्वती पृथ्वी पर प्रगट हुई थीं।
पंचांग के अनुसार आज शनिवार को प्रात: 03 बजकर 47 मिनट से ही शुरु हो गया है। सरस्वती जी की पूजा विधि विधान से की जाएगी। पंचमी तिथि 06 फरवरी दिन रविवार को प्रात: 03 बजकर 46 मिनट तक रहेगी ।
सिद्ध एवं बुधादित्य योग में बसंत पंचमी इस साल की बसंत पंचमी सिद्ध एवं बुधादित्य योग में मनाई जा रही है । इस दिन सिद्ध योग सुबह से लेकर शाम 05:42 बजे तक है. मकर राशि में बुध और सूर्य मिलकर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहे हैं. नवग्रह चार राशियों में मौजूद होकर केदार शुभ योग बना रहे हैं. इसके अलावा बसंत पंचमी को शाम 04:09 बजे से रवि योग प्रारंभ हो रहा है, जो अगले दिन प्रात: 07:06 बजे तक है.
बसंत पंचमी को होता है अबूझ मुहूर्त
बसंत पंचमी के दिन मां सस्वती का प्रकाट्य हुआ था. इस अवसर पर पूरे दिन अबूझ मुहूर्त रहेगा । आप जो भी शुभ कार्य करना चाहते हैं, वह कर सकते हैं. इसके लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है. यद्य्पी बसंत पंचमी को विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, मकान, वाहन आदि की खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त बना हुआ है.
बसंत पंचमी 2022 सरस्वती पूजा मुहूर्त
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का मुहूर्त प्रात: 07:07 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक है । इस दौरान ही आपको सरस्वती पूजा कर लेनी चाहिए।
यह त्योहार सनातन पंचांग के हिसाब से माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन मनाया जाता है। माता सरस्वती ने पृथ्वी पर उदासी को खत्म कर सभी जीव-जंतुओं को वाणी दी थी। इसलिए माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी भी माना जाता है। उन्हीं के जन्म के उत्सव पर वसंत पचंमी का त्योहार मनाया जाता है और सरस्वती देवी की पूजा की जाती है
बसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है सरस्वती माता की पूजा,सरस्वती देवी ने जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी। इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
रति और कामदेव का ध्यान एवं पूजन साथ ही साथ बसन्त पंचमी के दिन पति-पत्नी भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा षोडशोपचार करते हैं तो उनकी वैवाहिक जीवन में अपार ख़ुशियाँ आती हैं और रिश्ते मज़बूत होते हैं।
ॐ वारणे मदनं बाण - पाशांकुशशरासनान्।
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त - विभूषणम्।।
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल - धारिणीम्।
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।
सरस्वती पूजन
स्कंद पुराण के अनुसार पूजा के लिए सफेद फूल, चन्दन, श्वेत वस्त्र से देवी सरस्वती जी की पूजा करना अच्छा होता है। माता सरस्वती के पूजन के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र
“श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”
का जाप करना उपयोगी होता है। वहीं रात में दुबारा धुप और दीपक जलाकर 108 बार मां सरस्वती के नाम का जाप करना और पूजा के बाद देवी को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए
कैसे उत्पन्न हुई माता सरस्वती-
ऐसी मान्यता है कि सृष्टि निर्माण के समय सर्वप्रथम आदि शक्ति का प्रादुर्वभाव हुआ। देवी महालक्ष्मी के आवाहन पर त्रिदेव यानि शिव, विष्णु व ब्रम्हा जी उपस्थित हुये। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी ने तीनों देवों से अपने-अपने गुणों के अनुसार देवियों को उत्पन्न करने की स्तुति की। माॅ लक्ष्मी की प्रार्थना स्वीकार करके तीनों देवों ने अपने गुणों के अनुरूप देवियों का आवाहन किया। सबसे पहले भगवान शिव ने तमोगुण से महाकाली को प्रकट किया, भगवान विष्णु ने रजोगुण से माॅ लक्ष्मी को और ब्रम्हा जी ने अपने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आवाहन किया।
माँ सरस्वती को क्यों कहा जाता है वाणी की देवी-
ब्रम्हा जी ने सृष्टि का निर्माण करने के बाद जब अपने द्वारा बनाई गई सृष्टि को मृत शरीर की भाॅति शान्त, व स्वर विहीन पाया तो ब्रहमा जी उदास होकर बिष्णु जी से अपनी व्यथा को व्यक्त किया। विष्णु जी ने ब्रहमा से कहा कि आपकी इस समस्या का समाधान सरस्वती जी कर सकती है। सरस्वती जी की वाणी के स्वर से आपकी सृष्टि में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी। तब ब्रहमा जी ने सरस्वती देवी का आवाहन किया। सरस्वती जी के प्रकट सरस्वती जी के प्रकट होने पर ब्रहमा जी ने अनुरोध किया हे देवी आप-अपनी वाणाी से सृष्टि में स्वर भर दो। माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को स्पर्श किया वैसे ही ”सा” शब्द फूट पड़ा। यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम सुर है
इस ध्वनि से ब्रहमा जी की मूक सृष्टि में स्वरमय ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एंव अन्य जीवों को वाणी मिल गई। नदियों में कलकल की आवाज आने लगी। इससे ब्रहमा जी ने प्रसन्न होकर सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुये वागेश्वरी नाम दे दिया।
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।*
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम् ॥