कायस्थों की विरासत

वैसे तो बहुत समय तक भारत में कायस्थों का साम्राज्य रहा है और कायस्थों में बहुत कुछ ऐसा निर्माण कराया की भारत में वह यादगार योग्य है ! कायस्थों में पूर्व में बहुत सारे राजा हुए हैं जिन्होंने कायस्थ साम्राज्य को विस्तारपूर्वक फैलाया और एक सभ्य संभ्रांत समाज की नींव रखी समाज के लिए बहुत सारे सामाजिक कार्य किए ! उन्हीं में से एक नाम है महाराजा टिकैत राय बहादुर का जो कि एक कायस्थ थे और उन्होंने लखनऊ तथा उसके आसपास  बहुत सारी ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण किया


आइए आज उनके और साथ ही कुछ अन्य महान कायस्थ हस्तियों के बारे में आपको कुछ बताने का प्रयत्न करते हैं महाराजा टिकैत राय बहादुर (1760-1818) अवध के 1791 -1796 आसिफुद्दौला के शासन में दीवान थे! वह एक हिंदू कायस्थ जाति से थे!महाराजा टिकैत राय हिंदू होने बावजूद आसिफुद्दौला के दरबार में उच्च स्थान रखते थे ! महाराजा टिकैत राय ने टिकैत नगर और टिकैत गंज की स्थापना की ! उन्होंने कई मंदिरों, मस्जिदों, पुलों का निर्माण किया है तालाब खुदवाए इमामबाड़ा बनाया ! एक बारादरी और एक स्नान घाट राजा टिकैत राय द्वारा निर्मित है !


नवाब आसिफुद्दौला के प्रधानमंत्री राजा टिकैत राय ने लखनऊ को संवारने में अहम भूमिका निभाई जैसा कि अवध के जिलों के गजेटियर से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में कायस्थ न सिर्फ पढ़े लिखे थे बल्कि प्रभावशाली पदों पर तैनात थे। इन कायस्थों का प्रमुख केंद्र लखनऊ ही रहा है। नवाबी दौर में सआदत अली खां बुरहानमुल्क के अंत:पुर के दरोगा राय केशव राम श्रीवास्तव कायस्थ थे। सआदतअली के दीवान राजा अमृतलाल भी कायस्थ ही थे। नवाब सफदरजंग के सबसे विश्वास पात्र सहयोगी महाराजा नवल राय सक्सेना कायस्थ थे। लखनऊ मोहान रोड पर नवल गंज कस्बा इन्हीं के नाम पर है, उसको इन्होंने ही बसाया। अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला की सेना में उच्च अधिकारी राजा सिताबराय श्रीवास्तव थे।


नवाब आसिफुद्दौला के प्रधानमंत्री राजा टिकैत राय भी श्रीवास्तव कायस्थ थे। इन्होंने ही अकाल के समय लोगों की मदद का नायाब तरीका आसिफुद्दौला को सुझाया जिसका परिणाम लखनऊ की शान बड़ा इमामबाड़ा है। राजा टिकैतराय ने ही लखनऊ को संवारने और सुविधा संपन्न बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई और खुद भी बहुत काम किया। लखनऊ में सैकड़ों तालाब और बावलियों का निर्माण कराया। टिकैतगंज मुहल्ला बसाया और वहां पक्के तालाब बनवाए। यह तालाब आज भी लखनऊ की धरोहर है। महाराजा टिकैत राय का बनवाया राजा टिकैटतराय का तालाब लखनऊ के इतिहास में एक आलीशान धरोहर है इस आलीशान तालाब को बनवाने वाले राजा टिकैतराय एक महान हिंदू कायस्थ राजा थे। चारों तरफ से आसफी लखौड़ियों की गहरी सीढ़ियों से बंधा हुआ है ये पक्का वर्गाकार तालाब बड़ा ही भव्य नजारा पेश करता है।


यहां एक तरफ महिलाओं के नहाने के लिए पर्देदार घाट बना हुआ है। इसी तालाब के किनारे लखनऊ में होने वाला शीतला अष्टमी का मशहूर मेला लगता है जिसे 'आठों का मेला' कहते हैं।ऐसा कहा जाता है कि नवाबी दौर में इस मेले में शामिल होने के लिए राजा पालकियों और रथों से आते थे, जिसकी रौनक देखते बनती थी।शीतला मंदिर का पुनरोद्धार कर मेला प्रारंभ कराया। चौक के पास एक बाजार स्थापित कराई जो आज राजा बाजार के नाम से प्रसिद्ध मुहल्ला है। अवध क्षेत्र में राजा टिकैत राय जैसा समाज सेवी और दानी कायस्थ दूसरा नहीं था। राज टिकैत राय ने लखनऊ सहित अवध क्षेत्र में सौ से अधिक शिवमंदिर बनवाए।


रायबरेली के डलमऊ में गंगा पर सारे घाट और मंदिर राजा टिकैत राय के बनावाए हुए ही हैं। लखनऊ मलिहाबाद के बीच बेहठा नदी पर पुल भी राजा टिकैत राय ने ही बनवाया जिसमें अस्सी के दशक में जुनून फिल्म के महत्वपूर्ण दृश्य भी शूट किए गए थे। राजा टिकैत राय के नाम पर लखनऊ में टिकैतगंज कदीम, कण्डहा टिकैतगंज, बाराबंकी के टिकैत नगर और टिकैतगंज, रायबरेली और बदायूं में टिकैत नगर बसाए।


राजा टिकैत राय के मुकुट में दो मछलियों वाला राजचिह्न अंकित था। जो आज उत्तर प्रदेश के शासन में मुख्य चिन्ह के रूप में प्रयोग किया जाता है आसिफद्दौला के दरबार में धनपतराय, दुलास राय इनके भाई थे। इसी दरबार में राजा झाऊ लाल को वजीर-ए-खास बनाया गया। झाऊलाल सक्सेना कायस्थ थे। लाला झाऊलाल ने महबूबगंज, तोपदरवाजा, खयालीगंज और झाऊलाल का पुल नामक मोहल्ले बसाये। आसिफुद्दौला के दरबारी शायर दौलत राय व मुंशी साहब राय भी कायस्थ ही थे। गाजिउद्दीन हैदर के वजीर राजा दयाकृष्ण और दीवान गुलाब राय और सिताब राय भी श्रीवास्तव थे। नसीरुद्दीन हैदर के दीवान मुंशी भोलानाथ और मुंशी रामदयाल, नवाब मुहम्मद अलीशाह के दीवान त्रिलोक चंद्र बक्शी और प्रधानमंत्री राजा जियालाल, नवाब अमजद अलीशाह के मुंशी ज्वाला प्रसाद, नवाब वाजिद अली शाह के वित्तमंत्री महाराजा बाल कृष्ण, दीवान, राजा बिहारी व तेजकृष्ण भी कायस्थ थे।


तेजी खेड़ा मुहल्ला इन्हीं के नाम पर है।कायस्थों ने भारत के ऐतिहासिक विरासत और धरोहरों को बनाने और संजोने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है परंतु आज जो कायस्थों की युवा पीढ़ी है उसे अपने पूर्वजों के योगदान का आभास ही नहीं है इस लेख को लिखने का तात्पर्य उन कायस्थ बंधुओं को अपने गौरवपूर्ण इतिहास का ज्ञान कराना और आगे नए गौरवपूर्ण इतिहास को रचने के लिए प्रेरणा देना है यदि लेख अच्छा लगे तो शेयर कर अन्य कायस्थ बंधुओं तक पहुंचाने का प्रयत्न करें जिससे उन्हें अपने गौरवपूर्ण इतिहास की जानकारी प्राप्त हो और भविष्य में वे एक नया इतिहास रचने के लिए प्रेरणा प्राप्त करें


यह लेखक के अपने विचार है । कायस्थ टुडे का इससे सरोकार नहीं है ।


अश्वनी कुमार श्रीवास्तव