आनन्द की सुगन्ध बिखेरने वाले- डा.आनन्द स्वरूप माथुर



         “ऐसा है रमेश जी ,हम डिनर पर तो आ जाएंगे लेकिन हमारी एक शर्त है जो आपको माननी पड़ेगी ।”डॉक्टर आनन्द स्वरूप जी ने मुझे फ़ोन पर कहा ।शर्त की बात सुनकर एक बार तो मैं घबरा गया ,लेकिन फिर हिम्मत कर के बोला “श्रीमान बात क्या है ज़रा खुलकर बताइये ।” तो उन्होंने कहा “बात तो साधारण है ,आपसे अनुरोध है कि आप हमें लिफ़ाफ़ा-रुपये नहीं देंगे ।” मैंने तुरंत कहा श्रीमान  ऐसा कैसे हो सकता है ,आपके सुपुत्र नमित जी व मेरी सुपुत्री जिज्ञासा के विवाह के पश्चात आप पहली बार हमारे घर पधार रहे हैं ?”तो उन्होंने उत्तर दिया देख लो सा ,अगर हमें डिनर पर बुलाना है तो इतना तो करना ही पड़ेगा ।”मन मारकर मैंने हाँ कर दी  ,और करता भी क्या ?अगर समाज की कुरीतियों ,ग़लत परम्पराओं ,दक़ियानूसी पुराने विचारों को बदलना है तो शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए ।सम्भवतः  डॉ.आनन्द जी इसी बात में विश्वास करते थे ।उनके इस  सुधारवादी सोच का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा ।          


5 अगस्त 1948 को नयाबास,जोधपुर निवासी स्व.श्री मगन मल जी माथुर-स्व.श्रीमती कमला देवी माथुर के घर आपका जन्म हुआ ।आनन्द स्वरूप जी के तीन भाई -स्व.श्री चंद्र प्रकाश जी ,श्री तारा प्रकाश जी (ज्येष्ठ भ्राता )तथा  श्री ज्योति स्वरूप जी (लघु भ्राता )हैं ।इनकी 5 बहने हैं स्व. श्रीमती अंबिका जी ,स्व.श्रीमती रतन कंवर जी ,श्रीमती सूरज लता जी ,श्रीमती तारा जी तथा श्रीमती विजय लक्ष्मी जी ।

आनन्द जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महिलाबाग हाई स्कूल से पूरी की । प्रतिभाशाली विद्यार्थी होने के कारण आपका राजकीय सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज जोधपुर के प्रथम बैच में प्रवेश हो गया । MBBS करने के पश्चात आपने बी.एस.एफ. में तीन वर्ष डिप्टी कमाण्डेंट के पद पर  कार्य किया ।इसी मध्य स्व.श्री नंदलाल जी नेपालिया-स्व.श्रीमती चंद्र सखी जी की सुपुत्री मधु जी के साथ आप प्रणय सूत्र में बँध गए । डॉक्टर सुभाष नेपालिया तथा श्री अनिल नेपालिया,श्रीमती मधु जी के भाई है ।BSF से त्यागपत्र देकर, वे RPSC द्वारा राज्य के चिकित्सा विभाग में नियुक्त हुए । उनका प्रथम पदस्थापन  भोपाल गढ़ के पास हुआ ।  कुछ वर्ष पश्चात्  डॉ.आनन्द जी ने पोस्ट ग्रेजुएशन करने की ठानी ।उन्होंने अहमदाबाद मेडिकल कॉलेज से मनोचिकित्सा (Psychiatry ) में 1981 में MD की डिग्री प्राप्त की ।कई वर्षों तक राजस्थान में विभिन्न स्थानों पर कार्य करने के पश्चात वे 3 अक्टूबर 1991 को प्रतिनियुक्ति पर भारत के विदेश मंत्रालय में चले गए ।जहाँ उनको भारतीय राज दूतावास कम्बोडिया के अंतर्गत ITEC प्रोजेक्ट में कार्य हेतु नोमपेन्ह (कंबोडिया )भेजा गया ।सुपुत्र नमित तथा सुपुत्री निधि की पढ़ाई के कारण ,वे अपने परिवार को  साथ नहीं ले जा सके ।उन्होंने कंबोडिया के कण्डाल के प्रान्तीय मुख्य अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएँ दी ।अपने मधुर व्यवहार ,नि:स्वार्थ सेवा भाव ,व  सहयोग से वहाँ के निवासियों तथा अधिकारियों का उन्होने दिल जीत लिया ।


डा.आनन्द स्वरूप जी की कार्यकुशलता ,क्षमता ,सेवाभाव ,सहृदयता तथा विषय विशेषज्ञता से प्रभावित होकर कंबोडिया के तत्कालीन राजा हिज हाइनेस नरोत्तम सिंहनोक तथा प्रथम प्रधानमंत्री नरोत्तम रानारिद्ध ने,उस समय के भारतीय राजदूत डॉक्टर जी.एस.राजहंस ,से अनुरोध किया, कि वे भारत सरकार से निवेदन करके, डॉक्टर आनन्द स्वरूप जी का सेवाकाल विस्तार-बढ़ा(एक्स्टेंशन) दे ।भारत सरकार ने तुरन्त उनका सेवाकाल बढ़ा दिया ।डॉक्टर आनन्द स्वरूप जी ने,कंडाल प्रांत के अस्पताल में बच्चों व वयस्कों के लिए,एक पृथक मनोचिकित्सा विभाग की स्थापना की ।कंबोडिया की जनता ,सरकारी अधिकारियों ,अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सदस्यों ,भारत व अन्य देशों के राजदूतों ने ,उनकी चिकित्सकीय तथा आपातकालीन सेवा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की ।कंबोडिया में भारत और भारतीयों की प्रतिष्ठा बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य डा.माथुर ने किया ,जो हमारे लिए गौरव का विषय है ।

कंबोडिया से लौटकर डॉक्टर आनंद माथुर पुनः राजस्थान के चिकित्सा विभाग में पदस्थापित हुए ।इसके बाद वे जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल के उप अधीक्षक भी रहे ।विभिन्न स्थानों पर CMHO के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने स्थानीय जनता की सराहना प्राप्त की ।इसके पश्चात उन्होंने,चिकित्सा विभाग राजस्थान जयपुर मैं डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्य किया ।बाद में वे एडिशनल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए ।रिटायर होने के पश्चात डॉक्टर आनन्द जी ने मेडिकल विश्वविद्यालय राजस्थान जयपुर में,परीक्षा नियंत्रक के रूप में एक वर्ष तक कार्य किया। अपने आप को व्यस्त रखने के लिए ,जीवन के अंत तक शेल्बी अस्पताल वह नारायणा मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल में अपनी सेवाएँ देते रहे ।अपनीं पत्नी श्रीमती मधु जी के साथ उन्होंने कई देशों की यात्रा की ।सुपुत्र नमित के संयुक्त राज्य अमेरिका में सेवारत होने के कारण अक्सर वहाँ आना -जाना रहता था ।अपने पौत्र विनायक-विनम्र तथा दोहित्र-दोहित्री ,वैभव -पूर्वी से उन्हें विशेष लगाव था ।एक सफल लोकप्रिय चिकित्सक के सभी गुण उनमें विद्यमान् थे ।धैर्य से केस हिस्ट्री सुनना ,उसके अनुसार डायग्नोसिस करके सही उपचार करना ,उनकी विशेषता थी ।अपनी चिर-परिचित मुस्कराहट ,तथा बच्चे -युवा -वृद्ध -रोगी के मित्र बनकर ,अपनेपन के व्यवहार से मरीज़ों का मनोबल ऊँचा बनाये रखते थे ।निष्ठावान डॉक्टर के रूप में समाज -प्रान्त के रोगियों की सेवा ,वे अंतिम समय तक करते रहे ।

वे एक ज़िम्मेदार पुत्र -पति-पिता तथा मित्र थे ।परिजनों व मित्रों के तो वे संकट मोचक थे ।चौबीसों घण्टे (24*7 )वे सेवा -सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।परिवार में किसी को भी बताएँ बिना कई मरीज़ों व असहाय लोगों की सहायता करते रहते थे ।’यथा नाम यथा गुण ‘,आनन्द जी जहाँ भी जाते-जिससे भी मिलते,वहाँ आनन्द-ख़ुशी बिखेर देते थे ।उनसे मिलते ही हमें तुरन्त आनन्द व अपनेपन के वाइब्रेशन की अनुभूति हो जाती थी ।उनके व्यक्तित्व में गहरा आकर्षण था ।निकट के रिश्तेदारों व मित्रों से घिरे हुए रहने में  उन्हें बहुत आनंद आता था ।इस हेतु वे अक्सर पार्टियों का आयोजन करते रहते थे ।यह कहना ग़लत नहीं होगा कि वे पार्टी -सहभोज करने का बहाना ढूंढते थे ।अपने नाम के अनुरूप वे जीवन पर्यंन्त हम सबके जीवन को आनंदित करने में लगे रहे ।वे जीवन की वास्तविकता और व्यावहारिकता पर अधिक ध्यान देते थे । कोरोना वायरस महामारी काल में भी अपने रोगियों के लिए अस्पताल बराबर जाते रहे ।इसी मध्य वे भी कोरोनावायरस की चपेट में आ गए ।भरसक प्रयास करने पर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका ।मानवता की सेवा करते -करते ,15 मई 2021 को उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया ।कठोर लॉकडाउन वह प्रतिबंधों के कारण उनके सुपुत्र -सुपुत्री तथा दामाद राकेश जी भी उनके अंतिम समय में उपस्थित नहीं हो सके ।विश्वास ही नहीं होता कि डॉक्टर आनंद स्वरूप माथुर सा आज हमारे बीच नहीं है ।एक चिकित्सक के रूप में ,मानवीय सेवा में उनका योगदान  व बलिदान भुलाया नहीं जा सकता । 5 अगस्त 2021 को इस महान व्यक्तित्व की जयंती पर हार्दिक श्रद्धांजलि ।

रमेश चन्द्र माथुर “कृतज्ञ “अटलांटा,सं.रा.अमेरिका