भगवान श्री चित्रगुप्त जी एक ,प्राकट्य दिवस दो बार ......?


  जयपुर, 2 मई । कायस्थ समाज के आराध्य देव श्री चित्रगुप्त जी महाराज एक है लेकिन समाज अपने आराध्य देव का प्राकट्य दिवस साल में दो बार मनाते है ।


कायस्थ समाज का एक प्रबुद्व वर्ग धर्मराज दशमी को प्राकट्य दिवस मनाता है जबकि दूसरे प्रबुद्व वर्ग ने गत 30 अप्रेल को गंगा सप्तमी पर भगवान श्री चित्रगुप्तजी का प्राकट्य दिवस मनाया है ।
 
कायस्थ समाज साल में दो बार अपने आराध्य देव श्री चित्रगुप्त जी के प्राकट्य दिवस मनाने को लेकर भ्रम की स्थिति में है । यहीं नहीं अन्य समाज के प्रतिनिधि भी इस बारे में चर्चा करते है ।
 


एक व्हाटसअप वाल पर  प्रदीप माथुर ने इस भ्रम की स्थिति को देखकर इसका जिक्र यूं किया  


          धर्म व श्रृद्धा की सोच की पृथकता व मान्यता इस स्तर तक तो ठीक है कि हम किसी दिवस को मनायें या ना मनानें का निर्णय ले लें,किंतु यह तो सहज नहीं लगता हैं कि हम अपने ईष्ट देव के प्राकट्य दिवस की तिथि की(अपनी सुविधानुसार, सही जानकारी के अभाव में अथवा 3 या 30 के मुकालते में )वास्तविकता को ही नकारते रहें। इन दो तिथियों के माने जाने का वास्तविक सच  भी उजागर होना चाहिये।
 
 इसी व्हाटसअप वॉल पर इसका प्रत्युत्तर आया .......


  चित्रगुप्त जी को धर्मराज मान कर पूजा करने वाले चित्रवंशीयों को उन्हें यमराज का मुनीम मानकर काल्पनिक तिथियों का प्रचार करने वाले लोगों  के असभ्य  तर्कों व शब्दों को महत्व देने की आवश्यकता नहीं है। या फिर उन्हीं की भाषा में जवाब तुरंत दे देना चाहिए।


 ऋग्वेद, उपनिषद व महाभारत काल तक चित्रगुप्त जी का कहीं उल्लेख नहीं है। उस समय तक धर्मराज व यमराज का ही उल्लेख है। बाद में लिखी पुराणों में चौदह यमों  का वर्णन है जिन्हें धर्मराज की उपाधि दी गयी थी और चित्रगुप्त जी भी उनमें से एक हैं। अतः धर्मराज दशमी ही उनका दिवस है। गंगा सप्तमी का चित्रगुप्त जी से कोई संबंध नहीं है।
 
सारे देश में धर्मराज दशमी पर घरों में दीप प्रज्ज्वलित हुये थे जो सोशलमीडिया में बड़े स्तर पर दिखाये भी गये थे। उसे हमने प्रचारित नहीं किया यह हम लोगों की कमजोरी है। भारत के सबसे पुराने दोनों चित्रगुप्त मंदिर उज्जैन व अयोध्या आज भी धर्मराज मंदिर व धर्म हरि मंदिर के नाम से सैंकड़ों वर्षों से जाने जाते हैं। दोनों का वर्णन स्कंदपुराण में हैं।
 


सभी पुराणों में भी चित्रगुप्त जी को न्याय व धर्म के अधिकारी के रूप में दर्शाया गया है। धर्माधिकारी और धर्मराज या धर्मदेव में क्या अंतर है?  नादान लोग बतायेंगे कि युधिष्ठिर व हरिश्चन्द्र किस धर्मराज के अंश से उत्पन्न हुये थे। क्या यमराज के? जैसा कि कुछ धर्मराज व यमराज के एक होने पर जोर देते रहते हैं। क्या कुंती ने संतान के लिए यमराज का आह्वान किया था?  


यदि बृह्मा ने चित्रगुप्त जी को कर्मानुसार पाप पुण्य का निर्णय करने व तदानुसार जीव को मृत्योपरांत उचित लोक में भेजने का फैसला करने का दायित्व सौंपा था तो कौन अभागा कायस्थ उन्हें धर्मराज या धर्मदेव मानने से इंकार करेगा?  


केवल अहंकार व द्वेष वश चित्रगुप्त जी के देवत्व को नकारना व उन्हें सहायक या मुनीम बना देना वंश द्रोह अपराध है। बृह्मलोक व्यवस्था में कोइ देव सहायक स्वयंमेव में देवता नहीं हो सकता और हमारे वंश प्रवर्तक देवता हैं कोई सहायक या कर्मचारी नहीं। वे धर्मराज पद पर आसीन देव हैं जो न्याय व धर्म का नियंत्रण करते हैं। इसीलिए मंत्र है ओम यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय व नम:.  मतलब यम यानि नियम, धर्म यानि संहिता के अधिष्ठाता श्री चित्रगुप्त को प्रणाम।


   उज्जैन के प्राचीनतम धर्मराज चित्रगुप्त मंदिर में जाकर देखो वहाँ आज भी चित्रगुप्त जी की प्राचीन प्रतिमा धर्मराज के नाम से जानी जाती है. इसीलिये अब वादविवाद में नहीं पड़ना है और धर्मराज चित्रगुप्त जी की विश्वयापी पूजा का केंद्र बिंदु यम द्वितीय के साथ साथ  धर्मराज दशमी को प्रचारित करते रहना है. यही हमारे वंश पितामह के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी ।
 
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् जयपुर, राजस्थान कायस्थ महासभा एवं साथी संस्थायें
     अरविन्द कुमारसंभव


साभार व्हाटसअप वॉल से