बेटी का भाग्य


 रोशन अकेला श्याह काली रात में कोलतार बिछी सड़क पर विचारों में खोया चल रहा था। आखिर परिवार की बड़ी जिम्मेदारियां जो उस पर थी।

     बेटी चंचल बड़ी थी रोहन छोटा था बी.ए. फाइनल में पढ़ रहा था चंचल में एम.ए.समाजशास्त्र में कर लिया था। यशोदा पत्नी थी जो घर गृहस्थी के काम मे लगी रहती थी।

      यशोदा ने रोशन से कहा कल हमारी बिटिया को देखने के लिये मेहमान आने वाले है, आपने उन लोगो की खातिरदारी के लिए क्या सोचा, नाश्ता- खाना आदि के बारे में क्या मीनू सोचा । आप बताइए ताकि सारी व्यवस्थाएं सभी मिल कर सकें ।

   बिटिया की शादी की सोच

बड़े बड़े लोगो के दिलो की धड़कन बढ़ा देती है, इन्ही विचारों में खोया रोशन सड़क पार कर घर की ओर चला जा रहा था।

        अचानक तेज गति से चलती कार आई और रोशन को टक्कर मार चली गई। राहगीरों ने घर पर इस दुर्घटना का समाचार दिया। घर मे कोहराम मच गया।

      क्या सोचा ओर क्या हो गया यशोदा मन ही मन ऊपरवाले को कोष रही थी। बिटिया चंचल ने हिम्मत रखते हुए पाया को अस्पताल पहुंचाया ओर उपचार चालू करवाया।

  नियत समय और दिवस पर मेहमानों का आगमन हुआ। घर की परेशानी को समझते हुए उन्होंने घर के सदस्यों को अपनी मेहमानदारी में व्यस्त न कर रोशन जी की देखभाल हेतु समय का उपयोग कराना मुनासिब समझा। 

     अस्पताल में रोशन जी से मिल कर उन्हें आश्वस्त किया और कहा कि आप जल्द ठीक हो जायेगे अगले सप्ताह तो आपको बिटिया को घर से विदा करना है। हमें बिटिया पसन्द है। हमे एसी ही होशियार बेटी की जरूरत है जो हमे मिल गई है। आपको किसी बात की चिंता नहीं करनी है सारी व्यवस्थाएं समय पर हो जाएगी।

   रोशन जी अववाक रह गए यह बात सुन कर। वे सोच भी नहीं सकते थे कि ये लोग इतने भले इंसान होंगे।      

           उन्होंने भगवान को शुक्रिया अदा करने हेतु दोनों हाथ जोड़ दिए जिन्हें होने वाले समधी ने अपने दोनों हाथों में पकड़ कर कहा - रोशन जी भगवान ने हम दोनों की सुनी है, मेँ भी उन्हीं को धन्यवाद देना चाहता हूं । 

      बिस्तर पर लेटे रोशनजी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । ये किसी दुःख, गम, रंज की नही बल्कि खुशी से बहने वाली अश्रुधारा थी।  

       उम्मीद के सहारे रोशन जी को अब बिटिया की विदाई के लिए बिस्तर से उठना ही होगा बिटिया के भाग्य से सब कुछ अच्छा होना था। इसीलिए कहते है बेटियां अपना भाग्य स्वयं लेकेर पैदा होती है किसी पर भार नही बनती है।

रामस्वरूप भटनागर सोजत