भविष्य दृष्टा थे हिंदी के महान कवि मुंशी प्रेमचन्द जी


 आज 31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद जी की जयन्ती है ।जीवन में फैली उलझनों व जीवन की जटिलताओं का वैयक्तिक स्तर से सामाजिक स्तर तक सफल चित्रांकन करने वाले ख्यातनाम साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी को शत शत नमन् ।

कलम के धनी प्रेमचंद जी विशुद्ध ग्रामीण जीवन की मिट्टी के खाद थे. वे जाति से कायस्थ थे, किन्तु उनके पूर्वज खेती बाड़ी का ही काम करते थे प्रेमचंद जी का जीवन लमही में बीता था वे किसानों के दुःख दर्द को पहचानते थे अपनी आँखों के आगे उन्होंने जमीदारों के जुल्म, साहूकारों के शोषण, पंचायत का आतंक और रूढ़ियों से ग्रस्त नारी समाज पर होने वाले अत्याचारों को घटित होते देखा था.


यही कारण है कि उनके उपन्यासों में उस युग का केनवास अपने व्यापक प्रभाव को प्रतिबिम्बित करता हैं. प्रेमचंद जी मात्र अपने परिवेश से ही नहीं जुड़े थे, बल्कि उनका युग बोध विस्तृत एवं विशाल था.उनकी रचनाओं में तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक घटनाओं का सशक्त चित्रण हुआ हैं। सामाजिक रूढ़ियों नव जागृति की लहर को प्रकट करने में प्रेमचंद जी कुशल रहे हैं।उनके उपन्यासों में व्यष्टिगत सत्य के साथ साथ समष्टिगत तथ्य की भी अभिव्यंजना हुई हैं जैसे प्रेमाश्रम उपन्यास में ज्ञान शंकर व प्रेमशंकर जी के माध्यम से समाज के दो वर्गों के नायक व प्रतिनायक के रूप में एक दूजे के विरुद्ध खड़ा किया है।किन्तु वहाँ व्यक्ति की तुलना में समाज को अधिक महत्व दिया हैं। इसी तरह गोदान में ग्राम्य जीवन में फैली उलझनों व जीवन की जटिलताओं का वैयक्तिक स्तर से सामाजिक स्तर तक सफल चित्रांकन हुआ हैं।


प्रेमचंद जी के उपन्यासों में नारी पात्रों का प्रभावी वर्णन मिलता हैं। हमारे समाज में नारी को पुरुष के अहम और उसके तिरस्कार का शिकार होना पड़ा, उन्होंने नारी को अनावश्यक रूप से दबाना अन्यायपूर्ण हैं।उनकी अशिक्षा, विधवापन और उनके शोषण का खुलकर चित्रण किया हैं। पर गबन की जालपा और गोदान की धनिया व मालती के माध्यम से नारी की संघर्षशीलता को दर्शाया गया हैं।यदि वह दृढ निश्चय कर ले तो अपना जीवन सुधारने के साथ साथ अन्य की वैतरिणी भी लगा सकती हैं। इसी तरह समाज में वेश्याओं की समस्या और अनमेल विवाह की व्यथा को उभारने की भी कोशिश की हैं।गबन की जोहरा और रतन स्त्री पात्रों दारा हमारा ध्यान इस ओर आक्रष्ट किया है। प्रेमचंद ने सभी पात्रों के चरित्रांकन में मनोविज्ञान का सहारा लिया हैं ।


प्रेमचंद जी सत्य व शिव के उपासक थे। उन्होंने सुंदर की उपेक्षा नहीं की पर सत्य व शिव की तुलना में उसे कम ही महत्व दिया हैं। जैसे कृषक, जमीदारों, मजदूर, पूंजीपतियों का संघर्ष दिखाकर सत्य को चित्रित किया हैं।सचेत नागरिक, संवेदनशील लेखक और सकुशल प्रवक्ता प्रेमचन्द जी हिंदी के महान कवि थे, इन्हें हम मुंशी प्रेमचंद जी के रूप में जाना जाता हैं। हिंदी साहित्य के विकास में प्रेमचंद जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा.उपन्यास एवं कहानी विधा में इनकी जोड़ी का दूसरा कोई समकालीन लेखक नहीं था .हीरा मोती, ईदगाह इनकी कहानियाँ तो हमने हिंदी की पाठ्यपुस्तक में पढ़ी ही होगी। 31 जुलाई 1880 को यूपी के लमही नामक गाँव में प्रेमचंद जी का जन्म हुआ था.इनके पिताजी का नाम अजायबराय और माताजी का नाम आनंदी देवी था, पेशे से पिताजी अंग्रेजी सेवा में डाक विभाग के मुंशी हुआ करते थे।


वर्ष 1898 में प्रेमचंद जी ने दसवीं की परीक्षा पास की और शिक्षक के रूप में अध्यापन से अपने करियर की शुरुआत की, वे अपने पेशे के साथ साथ अपने अध्ययन को जारी रखा और वर्ष 1910 में जाकर इन्होने में बाहरवीं की परीक्षा उतीर्ण की।बचपन में प्रेमचंद जी का नाम धनपत राय था। हिंदी में लेखन की शुरुआत इन्होने प्रेमचंद जी के नाम से लिखना शुरू किया. इन्होने कई हिंदी उपन्यास भी लिखे, सेवा सदन, निर्मला, गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि इनके द्वारा रचे गये. इसके बाद 1918 में इन्होने स्नातक की तथा दरोगा की नौकरी के लिए नियुक्त हुए। पन्द्रह साल की आयु में ही प्रेमचंद जी का विवाह हो गया था। शादी के समय ही इनके पिताजी का देहांत हो गया था। जिसके चलते परिवार का पूरा भार उनके कंधों पर आ गया। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर इन्होने दरोगा के पद से इस्तीफा दे दिया था।कहानी उपन्यास विधा के सम्राट मुंशी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरणा देने के लिए साहित्य लेखन , उर्दू भाषा में नवाबराय के नाम से लेखनी शुरू की। कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी मुंशी जी के प्रसिद्ध नाटक थे. तीन सौ से अधिक कहानियों को मानसरोवर में संग्रहित किया गया। प्रेमचंद जी ने कई निबंध रचनाएं भी की. उनकी लेखनी का मूल केंद्र निर्बल व असहाय, कृषक, मजदूर व नारी शामिल थे.


प्रेमचंद जी भारतीय संस्कृति के सच्चे नायक थे. साम्यवाद, गाँव और मजदूर की पीड़ा के प्रतीक बनकर इन्होने अपनी लेखनी से सच्चा चित्र प्रस्तुत किया।प्रेमचंद जी ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर करने के लिए जागृति फैलाई. इनकी भाषा सरल सौम्य एवं बोलचाल की भाषा थी, हिंदी उर्दू तथा देशी भाषाओं के मुहावरों व कहावतो का सुंदर प्रयोग किया ।उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद कलम के सच्चे सिपाही थे। उन्होंने आजीवन साहित्य लेखन में ही अपनी उम्रः गुजारी. उनका समूचा कथा साहित्य एवं उपन्यास साहित्य जीवन की सच्ची अनुभूतियों का वास्तविक दर्पण हैं।वे एक सामाजिक उपन्यास कार थे। उन्होंने सेवा सदन से लेकर गोदान तक अपनी सृजनात्मक यात्रा में अपने लेखन को सर्वथा बदला है, लेकिन स्वभाव न बदला. उनके उपन्यासों में आदर्शोंन्मुखी यथार्थवाद के दर्शन होते हैं ।उनके उपन्यासों के सभी पुरुष एवं स्त्री पात्र हमारे आस पास के जन जीवन में देखे जा सकते हैं। उनका रचना संसार अत्यंत विशद् व्यापक एवं गहन है,

मुंशी प्रेमचंद जी हिंदी उपन्यास के प्रमुख कीर्ति स्तम्भ माने जाते हैं. आपके पूर्व हिंदी उपन्यासों के विषय वस्तु रहस्य रोमांच और सामान्य सामाजिक बुराइयों पर लिखे जाते थे ।लेकिन मुंशी प्रेमचंद जी ने हिंदी उपन्यासों की दिशा ही बदल दी. उन्होंने नवीन औपन्या सिक कौशल का प्रयोग करते हुए कलात्मक उपन्यासों की एक विस्तृत श्रंखला हिंदी जगत को प्रदान की. उनके उपन्यासों में तत्कालीन युग का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता हैं ।वे सही मायने में भविष्य दृष्टा थे. इसलिए सन 1920 से 1940 के बीच जो सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ उभर कर सामने आई थी, मात्र उसी का चित्रण इन्होने नहीं किया बल्कि भारत में उदित महाजनी सभ्यता को उन्होंने पहचान लिया था, वे सर्वहारा वर्ग के सच्चे चिंतक थे। तभी तो उनके उपन्यासों में किसान, मजदूर व मध्यम वर्ग की समस्याएं उभर कर आई हैं।उनके उपन्यासों में सामाजिक, राजनैतिक चेतना, मार्क्सवादी चिंतन और आर्थिक विषमता का खुलकर चित्रण हुआ हैं। वे प्रारम्भ में ही आदर्शवादी थे पर आगे चलकर उनके उपन्यासों में आदर्शोंमुखी यथार्थवाद के दर्शन होते हैं।


उनकी वस्तु योजना पात्रों का चित्रांकन तथा वातावरण का चित्रण अनूठा हैं. इनकी कहानियों व उपन्यासों में विषयवस्तु का प्रतिपादन इतना जीवंत हुआ है कि पढ़ते समय हमारी आँखों के आगे वे दृश्य सजीव हो जाते हैं।सेवा सदन से लेकर गोदान तक प्रेमचंद जी ने लगभग एक दर्जन उपन्यास लिखे तथा इन सभी उपन्यासों में कथानक की रोचकता तथा सामाजिक परिवेश का यथार्थ चित्रांकन हुआ हैं ।जैसे सेवा सदन में उपेक्षित स्त्री समाज और वेश्यावृत्ति की समस्याओं का चित्रण हुआ हैं। इसमें सुमन व शान्ति की दोहरी कथा संचरित हुई हैं। और उनके माध्यम से सामाजिक दोषों का चित्रण हो गया हैं।निर्मला उपन्यास में अनमेल विवाह का चित्रण हुआ है. यह भी नारी प्रधान उपन्यास है, जिसमें निर्मला की मृत्यु नारी उत्पीड़न की ज्वलंत घटना को रेखांकित करती हैं.


रंगभूमि व प्रेमाश्रम सामाजिक चेतना के साथ साथ राजनैतिक चेतना को चित्रित करते हैं, इन पर गांधीवाद का प्रभाव हैं । इनमें सूरदास नामक पात्र को केंद्र में रखकर शोषित व्यक्तियों की पीड़ा को चित्रित किया हैं।भारत में बढ़ते पूंजीवाद और औद्योगिक व्यवस्था की त्रुटियों को दर्शाया गया हैं. इसी तरह प्रेमाश्रम में हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की झलक देखने को मिलती हैं ।इनका कर्म भूमि उपन्यास भी इसी तरह का हैं। कर्मभूमि में स्वाधीनता आंदोलन व क्रांतिकारियों की भूमिका को कुशलता से उतारा गया हैं।प्रेमचंद जी रचित कायाकल्प व गबन सामाजिक उपन्यास हैं. कायाकल्प में सामन्ती जीवन की कमजोरियों को दर्शाया गया है, तो गबन में मध्यमवर्गीय लोगों की थोथी प्रदर्शन भावना को, कर्ज की समस्या और युवकों की आकांक्षाओं से उत्पन्न जीवन की जटिलताओं का चित्रण हुआ हैं. नारी के आभूषण प्रेम को बुरी परिणिति दिखलाई गई हैं.


प्रेमचंद जी का अंतिम उपन्यास गोदान है. जिसमें प्रेमचंद जी ने आदर्शों के खंडित हो जाने पर ग्रामीण व शहरी जीवन की समस्याओं को उजागर किया हैं, इसका प्रमुख पात्र होरी समूचे भारतीय किसानो का प्रतीक हैं।होरी के गाय खरीदने की इच्छा से उत्पन्न अनेक समस्याओं को इसमें निरुपित किया गया हैं. इस उपन्यास में जमीदारी अत्याचार, पंचायत का दुष्प्रभाव, छुआछूत की भावना, स्त्री पुरुष के अवैध सम्बन्धों का चित्रण, पूंजीपतियों की शोषण वृत्ति और इनकी विलासिता का बड़ा ही प्रभावशाली चित्रण किया गया हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश के प्रमुख साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयन्ती पर विनम्र श्रद्धांजलि दी है ।

 गहलोत ने टिवट में कहा अपने प्रसिद्ध उपन्यासों से उन्होंने मानव जीवन की बारीकियों और संघर्षों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। उनकी कालजयी रचनायें सदा प्रासंगिक रहेंगी।