"कविता"
'विश्वास' के साज से ही
स्वर खुशियों के बिखरेंगे,
दुख: तो छोटी एक 'बदली' है
'बादल' 'राहत' के बरसेंगे।
आस तू रख दिन निकलेगा
कोई रात रोक ना पायी इसे,
प्रकाशित होगी भोर नयी
फिर 'उम्मीदों के 'पर' फैलेंगे।
मज़बूरी हैं कोई बात नहीं
'घर' ही में रह कर जीतेंगे,
होगा बहाल मिलना जुलना
ये हाथ तो फिर से मिल लेंगे।
थोड़े ही दिन यूंही जप्त तू कर
दिनचर्या से दिन सुधरेंगे,
आहार- विहार के संयम से
दिन बुरे सभी के बहुरेंगे।
चित्रांश प्रदीप
अलवर(राज)