जयपुर, 15 मार्च । चित्रांश संगठनों ने आगामी 3 अप्रैल चैत्र शुक्ल दशमी धर्मराज दशमी, को धर्मराज चित्रगुप्त प्राकट्य दिवस मनाने की अपील की है ।
चित्रांश संगठनों ने कहा कि इस दिन संध्या को देव चित्रगुप्त के मंदिरों में न्यूनतम 51 दीपकों से सामूहिक आरती करें, प्रसाद वितरण करें । जहाँ मंदिर उपलब्ध नहीं है वहाँ चित्र पूजन करें. अपने क्षेत्र की समस्त संस्थाओं को भी प्रेरित करें कि वे भी अपने अपने स्तर पर या सामूहिक रूप से इसे मनायें. समारोह स्थल पर श्री चित्रगुप्त निधि के नाम से दान पेटी रखें जिसमें आयी राशि को इस समारोह के या आगामी वर्ष के पूजन प्रसाद व्यय में समायोजित करें । समारोह सादगी से, कम व्यय में मनायें।
एक चित्रांश संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के हवालेे से जारी अपील में कहा गया है कि श्री चित्रगुप्त बृह्मा के द्वारा धर्मराज पदवी धारक न्यायाधीश हैं जो मृत्योपरांत प्राणी के भूजगत में किये गये पाप पुण्य के आधार पर उसके पर लोक की श्रेणी ( यमलोक या देवलोक) तथा अवधि निर्धारित करते हैं और तदनुसार उस जीव को देवों को या यमराज को सौंपते हैं. वे किसी के मुनीम, लेखक या अधीनस्थ नहीं हैं जैसा कि मध्यकाल में लिखी पुराणों में हेरफेर करके लिखा गया है।
वे साक्षात धर्म हैं जिनके हरिश्चन्द्र व युधिष्ठिर अवतार थे। मूल रूप से धर्मराज व यमराज पृथक देव हैं जिनके प्रथक ही कार्य हैं। संशोधित कुछ पुराणों में इन्हें एक बता करके गुप्तकाल के बाद के कायस्थ विरोधी प्रभावशाली पंडित समूहों ने इन्हें एक लिख दिया।
विवेकशील कायस्थ इस पोंगापंथी कल्पित मान्यताओं को झटक कर फेंक दें, हम धर्म पुत्र हैं । समूचे भारत के कायस्थ अब कुछ वर्षों से धर्मराज दशमी को ही धर्मराज चित्रगुप्त का प्राकट्य दिवस मनाते आ रहे हैं।