समस्त पापों से मुक्त करता है ऋषि पंचमी का पावन उपवास। धन.धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है । भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाता है। इस पावन दिन सप्त ऋर्षियों का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से धन.धान्य
यह त्योहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन आता है। यह व्रत जाने.अनजाने में हुए पापों को नष्ट करने वाला है। व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण कर हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं। उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत का संकल्प लें। सप्त ऋषियों की सच्चे मन से उपासना करें। दीपए धूप जलाएं और पुष्प नैवेद्य अर्पित कर व्रत की कथा सुनें। सप्तऋषियों को मीठे पकवान का भोग लगाएं। सप्त ऋषियों की पूजा हल्दीए चंदनए रोलीए अबीरए गुलालए मेहंदीए अक्षतए वस्त्र फूलों से की जाती है। इस व्रत में एक बार रात के समय भोजन किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। हर स्त्री को ऋषि पंचमी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत का विधान स्त्री.पुरुष दोनों के लिए है। इस दिन व्रती को गंगा स्नान करना चाहिए।
ब्रह्मा पुराण के अनुसार एक बार राजा सिताश्व ने ब्रह्मा जी से पूछा किए सभी पापों को नष्ट करने वाला श्रेष्ट व्रत कौनसा हैंण् तब ब्रह्माजी ने ऋषि पंचमी को बतलायाण् ब्रह्माजी ने कहा. हे राजा सिताश्व ! विदर्भ देश में उतंक नाम का सदाचारी ब्राह्मण थाण्
जिसकी पत्नी का नाम सुशीला था कन्या विवाह होने के पश्चात विधवा हो गईण् इस दुःख से दुखित ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित ऋषि पंचमी का व्रत करने लगेण् जिसके प्रभाव से जन्मों के आवागमन से छुटकारा पाकर स्वर्गलोक के वासी हो गये।इस व्रत से जुड़ा एक प्रसंग महाभारत में देखने को मिलता हैंए जब उतरा के युद्ध के समय उसके गर्भ में पल रहे नवजात की मृत्यु हो गईण् तब इन्होने ज्ञानी पंडितों का परामर्श लिया।जिन्होंने उसे ऋषि पंचमी का व्रत कर विधि विधान के अनुसार पूजा करने को कहाण् उसने ऐसा ही किया जिसके परिणामस्वरूप राजा परीक्षित का जन्म हुआए जो आगे चलकर हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बनेण्
यह व्रत जीवन की दुर्गति को खत्म का जीव मात्र के सभी पापों को धो देता हैंण् ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाली स्त्री को सम्पूर्ण दोषों से मुक्ति के साथ ही सन्तान प्राप्ति व सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।
इस दिन व्रत रखने वाली स्त्री विधि पूर्वक पूजा कर ऋषि पंचमी की कथा सुने तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा सात ब्राह्मणों को श्रद्धानुसार दान देकर विदा करे।
आज की दुनिया का जो रुप है उसकी शुरूआत कई सदियों पहले ही हो चुकी थी। रचयिता के बाद इस दुनिया में वेद लिखे गए। चार वेदों में सात ऋषियों के बारे में पता चलता हैए जिनके कुल के वंशज आज भी हैं और अधिकांश भारतीय किसी ना किसी ऋषि के कुल से संबंध रखते हैं। इन्ही सात ऋषियों का सम्मान व्यक्त करने और उनकी पूजा करने के लिये ऋषि पंचमी मनाई जाती हैं। इस पंचमी पर महिलाएं व्रत करती हैं। हालांकि ये पुरुषों के लिये भी हैए लेकिन महिलाएं इस व्रत को रखती हैं। अगर ये व्रत और पूजा बिना शादिशुदा लड़कियां करें तो उनको काफी अच्छा फल मिलता है। इस दिन अगर किसी सरोवर या नदी में स्नान हो तो वो अति उत्तम है। इस व्रत का फल अन्य व्रतों से ज्यादा माना गया है। अगर विधान और साफ दिल से व्रत रखा जाए तो आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
पौराणिक कथाएं
किसी गावँ में
एक सदाचारी ब्राह्मण
अपनी पत्नी के
साथ रहता था।
उनके परिवार में
एक पुत्र और
एक पुत्री थे।
ब्राह्मण ने अपनी
कन्या पुत्री की
शादी अच्छे घर
में कर दी।
परंतु थोड़े समय
बाद ही उस कन्या
के पति की
अकाल मृत्यु हो
गयी। विधवा होने
के बाद वह
अपने पिता के
घर लौट आई।
ब्राह्मण दंपत्ति विधवा पुत्री
सहित कुटिया बना
कर गंगा तट
पर रहने लगे।
एक दिन विधवा
पुत्री के शरीर
पर बहुत सारे
कीड़े पैदा हो
गए। उसने अपनी
माँ को कीड़ों
के बारे माँ
बताया। माता पिता
बहुत दुखी हुए
और इसका कारण
और उपाय जानने
के लिए एक
ऋषि के पास
गए। ऋषि ने
अपनी विद्या से
उस कन्या के
पिछले जन्म का
पूरा विवरण देखा।
ऋषि ने बताया
कि यह कन्या
पिछले जन्म में
एक ब्राह्मणी थी।
रजस्वला होने पर
भी इसने घर
के रसोई के
सामान छुए थे
और घर के
सभी काम किये
थे।। शास्त्रों के
अनुसार रजस्वला स्त्री को
किसी प्रकार का
काम नहीं करना
चाहिए। लेकिन कन्या ने
सारे काम किये।
इस जन्म में
भी इसने ऋषि
पंचमी का व्रत
नहीं किया इसीलिए
इसे दंड भुगतना
पड़ रहा है।
उसी पाप के
कारण इसके शरीर
पर कीड़े पड़
गए है उपाय
पूछने पर ऋषि
ने कहा कि
यदि कन्या ऋषि
पंचमी का व्रत
और पूजा भक्ति
भाव से करे
तथा क्षमा प्रार्थना
करे तो इस
पाप से मुक्ति
संभव है। इससे
अगले जन्म में
भी इसे अटल
सौभाग्य प्राप्त होगा। कन्या
ने विधि विधान
से ऋषि पंचमी
का व्रत और
पूजन किया। जिससे
उसका दुःख दूर
हो गया। अगले
जन्म में उसे
अटल सौभाग्य और
धन धान्य आदि
सभी सुख प्राप्त
हुए।