समाज सुधारक और कवियत्री महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च 1907

महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की छायावादी युग की महान कवयित्री थी। महादेवी वर्मा हिंदी छायावादी युग की एक ऐसी महान कवयित्री थी जिन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।महादेवी वर्मा ने भारत की गुलामी और आज़ादी दोनों को ही देखा है तथा आजादी के पश्चात समाज सुधारक के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है।उन्होंने समाज में रहते हुये समाज में कष्टों से हाहाकार और रुदन को देखा है तथा उस भयंकर दुख तथा परिस्थितियों को अपने काव्य में अलंकृत किया है महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की एक महान कवयित्री के रूप में हमेशा जानी जाती रहेंगी। महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च सन 1907 में उत्तरप्रदेश राज्य के सबसे प्रसिद्ध नगर फर्रुखाबाद में होलिका दहन के पुण्य पर्व के दिन हुआ था।


महादेवी वर्मा के पिता जी श्री गोविंद प्रसाद वर्मा थे। जो भागलपुर के एक महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर आसीन थे।तथा इनकी माता जी का नाम हेमरानी देवी था। इनकी माता बड़ी ही संस्कारवान और धार्मिक प्रवृत्ति की थी जो घंटों कई धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया करती थी।जिसका प्रभाव उनकी बेटी महादेवी वर्मा पर भी पड़ा महादेवी वर्मा का विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ था। महादेवी वर्मा का निधन सन 1987 ईस्वी में इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था महादेवी वर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन विद्यालय से ही प्रारंभ की। महादेवी वर्मा साहित्य लेखन में इतनी अधिक रुचि लेती थी कि उन्होंने 7 वर्ष की अवस्था से ही कविताएँ लिखना प्रारंभ कर दिया था।


महादेवी वर्मा ने संस्कृत, अंग्रेजी, चित्रकला आदि की शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। किन्तु शादी के पश्चात उनके अध्ययन में कई बाधाएँ उत्पन्न हुई किंतु इनके पति के प्रयास के कारण इन्होंने इलाहाबाद कॉलेज में अध्ययन किया और वही हॉस्टल में रहने लगी तथा कक्षा आठवीं की परीक्षा में पूरे प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया जब तक उन्होंने मैट्रिक पास किया तब तक वे एक सफल कवियत्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी। सन 1932 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय में एम. ए. पास किया.


महादेवी वर्मा ने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय जागरण की कविताएँ लिखना आरंभ कर दिया था और वह ऐसी कविताएं लिखती थी,जिनमें मानवीय संवेदना साफ - साफ झलकती थी। महादेवी वर्मा ने लेखन संपादन और अध्यापन में अपना अमूल्य योगदान दिया। वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रही और उपकुलपति भी नियुक्त हुई । उनकी प्रमुख रचनाओं में निहार, नीरजा, संगीत दीपशिखा और यामा उल्लेखनीय है जबकि स्मृति की रेखाएँ और अतीत के चलचित्र उनके संस्मरण आत्मा का गद्य रचना संग्रह हैं।


इसी श्रृंखला की कड़ियाँ, पथ का साथी, मेरा परिवार और क्षणदा उनके निबंध संकलन है। महादेवी वर्मा बौद्ध धर्म से प्रभावित थी और महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर समाज सेवा मैं अमूल योगदान दिया।


स्त्रियों की मुक्ति शिक्षा और विकास के लिए उन्होंने जो समाज में आवाज उठाई है वह वास्तव में एक प्रशंसनीय कार्य है।कविता संग्रह - रश्मि', नीरजा,  निहार, सांध्यगीत दीपशिखा, सप्तपर्णा, अग्नि रेखा, प्रथम आयाम आदि हैं। इसके साथ कुछ अन्य काव्य संग्रह जैसे- आत्मिका,  परिक्रमा, यामा आदि भी महादेवी वर्मा की कृतियाँ हैं महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य तथा समाज कल्याण के अथक प्रयास के लिए कई प्रकार के पुरस्कारों से विभूषित किया गया है।


महादेवी वर्मा को सर्वप्रथम 1943 में मंगला प्रसाद पारितोषिक तथा भारत भारती सम्मान से सम्मानित किया गया।1956 में भारत सरकार द्वारा उन्हें हिंदी साहित्य में किए गए अमूल्य योगदान के लिए पदम भूषण से अलंकृत किया गया। तथा 1988 में उन्हें पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। महादेवी वर्मा की रचना नीरजा के लिए उन्हें 1934 में ससकेरिया पुरस्कार तथा यामा के लिए 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सुशोभित किया गया इसके साथ ही उन्हें उनकी काव्य संग्रह के लिए विभिन्न प्रकार के साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।