नक्षत्र आज रो रहे
सितारे डबडबारहे
चांद देखो आंसू टपकारहा
सूरज मद्धम हुआ जा रहा
भुलोक पर अंधेरा घोर छा रहा
पर स्वर्ग ज्योति से जगमगा रहा
धराचर शोकातुर स्तब्ध बैठ गये
पर देव गंधर्व आरती सजा आ गये
आज एक दिव्य पुंज ओझल हो गया
ठग कर करोड़ों को प्रारब्ध खेल कर गया
थी जीवन्त जो यहाँ मां सरस्वती वो चली गयी
युगों कल्पों की संगीत गान विरासत छोड़ गयी
रहेगी अमर कल्प कल्पांतर में वो दिव्य आवाज़
याद आयेगी वो जब सुरों में कोई छेड़ेगा साज
ऐ लता मंगेशकर माँ स्वरकोकिला विश्व सुरेश्वरी
रहोगी अमर ब्रह्माण्ड के रहने तक हे नादब्रम्हेश्वरी Kayastha Today
------अरविंद कुमारसंभव