सरस्वती पूजा: दसवीं कक्षा (संस्मरण) :- सुधा कुमारी जूही, सिमरी (बिस्फी)

विद्यालय का अंतिम वर्ष और सरस्वती पूजा: दसवीं कक्षा (संस्मरण)

माँ शारदे कहाँ तू वीणा बजा रही है,

किस मंजु गान से तू जग को लुभा रही है,

बसंत पंचमी के दिन वीणा पुस्तक धारिणी की आराधना में वीणा से कई गुणा ज्यादा तबले की थाप महसूस होती है और वही थाप लुभाती भी है।

प्रकृति की गोद में प्रतिष्ठित सिमरी हाईस्कूल.... पीछे हरी-हरी अमराई, सामने खेतों में सुंदर पीले सरसों के लहलहाते फूल, एक तरफ निर्मल तालाब, दूसरी तरफ हरे-भरे वृक्ष और बीच में स्कूल का श्वेत भवन तथा विशालकाय मैदान।

यहाँ की हवा में वो जादू है कि एक बार छू कर गुजर जाए तो रोम-रोम में उमंग और जोश की आग प्रज्वलित कर दे।

बसंत ऋतु में प्रकृति अपनी सुंदरता के चरमोत्कर्ष पर होती है और इसी मौसम में होता है हंसवाहिनी का आह्वान।

वर्ष 1990, जनवरी महीने का अंतिम सप्ताह.... सरस्वती पूजा की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। हमारी दसवीं कक्षा के छात्रों को सारा उत्तरदायित्व सौंप दिया गया था। धैर्यनाथ को अध्यक्ष बनाया गया, लड़कियाँ सभी अवाक... ये इतना बड़ा कबसे हो गया, अध्यक्ष बन गया...।न कोई अनुभव, न उम्र.. फिर भी जिस बखूबी से उसने इस जिम्मेदारी को निभाया वो काबिले तारीफ थी। उसकी सहायता में सारे लड़के तत्पर थे।

लड़कियों ने कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं ली क्योंकि सारी लड़कियों को साड़ी पहनने की चिंता थी। किसी से अच्छी साड़ी माँगना,उसका मैचिंग ब्लाउज खोजना, फिर उसे टाँकना,साथ में हार श्रृंगार की व्यवस्था करना, फिर पहनाने के लिए किसी अनुभवी औरत को मनाना... इतना टेंशन कम था क्या जो लड़को की सहायता करती....।

पता नहीं आखिर लड़कियाँ साड़ी पहनती थी किसे दिखाने के लिए? शायद लड़कों को... अब ये बात अलग है कि लड़कों को इतनी फुर्सत नहीं होती थी कि वो लड़कीयों की साड़ियाँ देखकर उस पर कमेंट करे... उन्हें बहुत काम रहता था भाई।

हाँ तो चंदा इकट्ठा हुआ। मिहिर और संतोष गया मधुबनी,वहाँ गुप्ता प्रेस से कार्ड छपवाकर लाया। बाजार से सजावट के सामान की खरीदारी हुई और फल प्रसाद की भी। हो सकता है कि बेर और केसौर खरीदते समय उनलोगो के मुँह में पानी आ गया हो, कोई ठीक नहीं है।

 सरस्वती जी की बहुत बड़ी सी मूर्ति  बनवाकर लाई गई जो कई लोग मिलकर भी बड़ी मुश्किल से उठा पा रहे थे। गेहूँ वाला प्रसाद सरोज के आटा चक्की से पिसवाया गया। सजावट के लिए लड़कियों ने अपने अपने घर से साड़ियाँ लाकर दी।

पूजा के पूर्व संध्या पर विद्यालय में बहुत से लड़के इकट्ठा हुए।सोनमाटोल के कुछ लड़कों को बुंदिया बनाने का अनुभव था,वो सब बुंदिया बनाना शुरू किया और सारे लड़के शुभे हो शुभे कहकर खाना शुरू किया। बीच-बीच में सजावट वाली साड़ियों को पहन-पहन कर लड़के लोग दिल में अरमान लिए मचल-मचल कर नाच रहे थे... यह दृश्य देखकर तो आसमान के चाँद सितारे भी हँस पड़े होंगे और बोले होंगे कि पढाई लिखाई अपनी जगह है, आशिकी अपनी जगह...। 

बुंदिया खाना और साड़ी पहनकर नाचना... अभिभावक और शिक्षक का कोई हस्तक्षेप नहीं.... लड़कों को तो जैसे ब्रह्मांड की सारी खुशियाँ विद्यालय प्रांगण में सिमटी दिखाई देने लगी।

इसी बीच बुंदिया बनाने के लिए जलावन खत्म हो गया तो सरस्वती माता की जयकारा लगाते हुए पूरे होशो-हवास में सातवीं कक्षा के दो बेंच और डेस्क को फ़ाड़ कर चूल्हे में जला दिया गया लेकिन बुंदिया निर्माण के कार्य को रुकने नहीं दिया गया।पुबाई टोल के लड़कों के सहयोग के बिना इस नेक कार्य को अंजाम तक ले जाना असंभव था,उनलोगों उत्साह के बदौलत ही ये संभव हुआ था।

ये होती है सच्ची श्रद्धा! सच्ची लगन!

रात भर उत्साह-उमंग के साथ ये सब काम चलता रहा। 

मूर्ति की स्थापना और सजावट नवमी कक्षा में हुई।

अगले दिन सुबह पूजा की तैयारी से वातावरण सुरभित था। हम लड़कियाँ जैसे-तैसे साड़ी पहनकर गिरते-पछड़ते साड़ी सम्हालते स्कूल पहुँचे।

स्कूल का प्रांगण रंग बिरंगे पताकों से सजा हुआ अपने शबाब पर था। मूर्ति की सजावट देख कर हमलोग हैरान थे। गीत याद आया... हैरान हूँ मैं आपकी ........को देखकर...। आकर्षक सजावट और पूजा का सब सामान सलीके से रखा हुआ।घोर आश्चर्य!!!! इन बेवकूफों ने इतना अच्छा से सब कुछ कैसे कर लिया... 

सरस्वती माता की पूजा हुई, हमलोग गीत गाए, प्रसाद लिए, सजावट का अवलोकन किया, फिर पूरे गाँव घूम कर घर आ गए।

अगले दिन मूर्ति विसर्जन था। तीन टायर गाड़ी हुई। एक पर मूर्ति और बाजा, बाकी दो गाड़ियों पर लड़कियाँ बैठी। सारे लड़के पैदल डांस करते हुए आगे बढ़ रहे थे। सभी लड़के-लड़कियों के चेहरे पर अबीर गुलाल... होली की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन से हो जाती है।

गाँव के बाकी जगहों की मूर्ति भी थी, कतार से करीब दस बारह टायर गाडियाँ थी। 

हमारे स्कूल के लड़के एक प्रशिक्षित नर्तक की तरह डांस कर रहे थे। गाना बजता था... मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ है.... चांदनी फिल्म अभी-अभी रिलीज हुई थी। 

लगभग उसी समय सलमान खान का भी अवतरण हुआ था,उसकी फिल्म मैंने प्यार किया का गाना भी बज रहा था।

 लड़कियाँ अपना राग अलाप रही थी... मधुबन में श्याम खेले होली,मधुबन में.....।

पुबाई टोल के तालाब में मूर्ति विसर्जन हुआ।

अगले दिन सब स्कूल पहुँचे।पढाई करने का मिजाज बिल्कुल नहीं था। अध्यक्ष महोदय की आवाज नहीं निकल रही थी, बोलते-बोलते गला बैठ गया था।

बुंदिया बहुत बचा हुआ था। हमलोगों को मैदान के एक तरफ बैठा कर पत्ता बिछाकर शिक्षको की निगरानी में बुंदिया खाने को दिया गया। दिल बाग-बाग हो गया।

आज भी बसंत पंचमी के दिन अपने विद्यालय की सरस्वती पूजा याद आ जाती है।

सरस्वती माता,विद्या दाता। KAYASTHA TODAY

साभार व्हाटसअप वॉल