ए गम जरा ठहरो फुरसत में आना : प्रहलाद नारायण माथुर ,अजमेर

 





ए गम जरा ठहरो, कभी खुशियों को भी आने दो,

बड़ी मुश्किल से उसे घर का पता मिला है,

उसे जरा जी भर कर देख लूँ फिर आना ||


ए गम जरा रुको, थोड़े फुरसत में आना,

अभी-अभी तो खुशी आयी है,

कुछ पल उसके साथ बीता लूँ फिर आना ||


ए गम जरा रुको, इतनी भी जल्दी क्या है?

अभी अभी तो गए हो, लम्बा वक्त गुजारा था तुम्हारे साथ,

कुछ वक्त खुद के साथ गुजार लूँ फिर आना ||


ए गम जरा सुनो, थोड़ा ठहर कर आना,

खुशी सो रही है कहीं तुम्हारी आहट से जाग ना जाये,

खुशी थोड़ा आराम कर ले फिर आना ||




ए गम जरा रुको, हमेशा आने को बेताब रहते हो,

खुशियों का भी तो कुछ हक है मुझ पर,

जरा उसका हक अदा हो जाये फिर आना ||


ए गम तुम कुछ देर तो ठहर जाओ,

बड़ी मुश्किल से खुशी को रोक रखा है,

खुशी खुद जब खुशी-खुशी चली जाए तब आना।।


ए गम सुनो, तुम यहां अब मत आना,

जब भी आते हो जाने का नाम नहीं लेते हो,

जब जिंदगी खत्म हो जाये फिर आना ||



(मेरी पुस्तक सफर रिश्तों का से एक कविता)