कायस्थ गौरव: पुलिन विहारी दास

 



क्रांतिकारी संगठन 'ढांका अनुशीलन समिति' के संस्थापक,प्रख्यात क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी कायस्थ कुल गौरव 'पुलिन बिहारी दास' पुलिन बिहारी दास, स्वतंत्रता सेनानी और "ढाका अनुशीलन समिति" नामक क्रांतिकारी संगठन के संस्थापक थे। उनका जन्म 24 जनवरी 1877 को बंगाल के फरीदपुर जिले में एक मध्यम-वर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था, उनके पिता वकील थे। जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा और ढाका कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत लेबोरेटरी असिस्टेंट व निदर्शक बन गए।

 बचपन से ही उन्हें शारीरिक संवर्धन का बहुत शौक था और वे बहुत अच्छी लाठी चला लेते थे, इस वजह से उन्होंने 1903 में तिकतुली में अपना अखाड़ा खोल लिया, फिर 1905 में लाठी चलाने के मशहूर मुर्तज़ा से उन्होंने लाठीखेल की बारीकियों को सीखा। सितम्बर 1906 में बिपिन चंद्र पाल के आह्वान पर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और उत्कृष्ट संगठनकर्ता होने के कारण, अक्तूबर में ही 80 सदस्यों के साथ उन्होंने ढाका अनुशीलन समिति का गठन कर लिया। पुलिन ने ढाका के जिला मजिस्ट्रेट बासिल कोप्लेस्टन एलन को मारने का प्रयास किया, पर वह बच गया। धन की कमी होने पर 1908 के प्रारंभ में उन्होंने सनीसनीखेज "बारा डकैती कांड" को अंजाम दिया, उससे मिले धन से क्रांतिकारी साथियों के लिए हथियार ख़रीदे। 


इस कांड की वजह से वे पकड़े गए और रिहा भी हुए, परंतु पुनः 1910 में पकड़ लिए गए। इस दौरान उन्हें काले-पानी की सजा हुई और वे सेल्यूलर जेल, अंडमान भेज दिए गए, जहां उनकी मुलाक़ात बारिंद्र घोष और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों से हुई। सन् 1919 में पूरी तरह से रिहा होते ही वे फिर सक्रिय हो गए और 1920 में "भारत सेवक संघ" की स्थापना की, परंतु कुछ समय पश्चात ही वे इस संघ से अलग हो गए।

पुलिन विहारी दास ने वर्ष 1922 में राजनीति से भी सन्यास ले लिया। 1928 में कलकत्ता में व्यायामशाला खोला और युवकों को लाठी चलाने, तलवारबाजी और कुश्ती की ट्रेनिंग देने लगे। धीरे धीरे जीवन के प्रति उनमें अनासक्ति भाव जागृत होने लगा और वे सत्संग आदि में लीन हो गए। कोलकाता विश्वविद्यालय उनके सम्मान में "पुलिन बिहारी दास स्मृति पदक" देती है। पुलिन बिहारी दास का 17 अगस्त, 1949 को कलकत्ता में मृत्यु हो गयी। स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों में से एक पुलिन बिहारी दास।


साभार ई प्रवीण सक्सेना