गोपालदास नीरज जी ने देवानंद के लिए कई हिट गाने लिखे


                                                                    नीरज जी को शत शत नमन्

                                             

"शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब

उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब

होगा यूँ नशा जो तैयार

हाँ...

होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है"

1968 की बात है, 'कन्यादान' फ़िल्म के लिए प्रोड्यूसर राजेंद्र भाट‍िया ने एक गीतकार को गाना ल‍िखने को कहा. पहले तो गीतकार ने गाना लिखने से मना कर दिया, लेकिन जब भाटिया ने बताया क‍ि यह गाना 'शश‍ि कपूर' पर फ‍िल्‍माया जाना है।तब क्या गीतकार ने झट से हामी भरी, कलम उठाई और तुरंत गाना लिखकर प्रोड्यूसर को दे दिया. मानो शश‍ि कपूर के नाम ने ही उनके दिमाग में तुरंत अक्षरों को गढ़ लिया था।इस काम में मात्र 6 म‍िनट लगे. और फिर इस गाने का परवान जो आशिकों पर चढ़ा, उसने हमेशा के लिए इसे अमर कर दिया ।


बोल थे..,

"लिखे जो ख़त तुझे, वो तेरी याद में

हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए

सबेरा जब हुआ, तो फूल बन गए

जो रात आई तो सितारे बन गए"


और इसको लिखने वाले गीतकार कोई और नहीं, बल्कि गोपालदास नीरज थे. जिनका हाल ही में निधन हो गया।


ऐसे में आइए एक नजर 'नीरज' के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जान लेते हैं –


गरीबी में गुजरा 'बचपन'

'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को गोपालदास सक्सेना के तौर पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के घर हुआ था।चार भाईयों में दूसरे नंबर वाले नीरज महज 6 साल के रहे होंगे, तभी सर से पिता का साया उठ गया। तो परिवार को पालने के बोझ ने उन्हें पास ही गंगा नदी से पैसे बटोरने को मजबूर कर दिया। गोपालदास गंगा में भक्तों द्वारा फेंके गए पांच-दस पैसे के सिक्के बटोर कर लाते और उन्हीं से उनके घर का चूल्हा जलता था।  


जैसे-जैसे नीरज बड़े होते गए, वैसे-वैसे उनकी लेखनी और काव्य पाठ में रुचि बढ़ने लगी. पढ़ाई में नीरज मेधावी थे. 1942 में एटा से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल पास कर नौकरी की तलाश में निकल पड़े ।समय बीतता गया और नीरज के ऊपर घर की जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. तब नीरज कुछ दिन इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट भी रहे । कुछ समय बाद वहां से निकले तो दिल्ली आ गए। यहां भी इन्हें सप्लाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी मिल गई.


इसके बाद नीरज जी कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी करने लगे। फिर बॉलक्ट ब्रदर्स नाम की निजी कंपनी में 5 साल बतौर टाइपिस्ट नौकरी की।इन सबके बीच नीरज जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और फिर मेरठ कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता नियुक्त हो गए। बाद में किसी कारणवश यहां नौकरी छोड़ अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्राध्यापक बन गए। 


1941 से ही नीरज जी ने कविता लिखना और 1944 से मंचों पर अपनी रचनाओं को पढ़ना शुरू कर दिया था. हालांकि अलीगढ़ आने से पहले ही ये कवि बन चुके थे, लेकिन कवि बनने के बाद की शौहरत, मान-सम्मान अलीगढ़ आने के बाद ही मिलीऔर तभी से ये मैरिस रोड पर जनकपुरी स्थित अपने घर में रह रहे थे । नीरज जी  इस दुनिया में नहीं हैं तो अलीगढ़ उनके नाम से विरक्त कैसे रह सकता है. उनके नाम से इस शहर की पहचान होगी. अलीगढ़ के लोग गर्व करेंगे कि गोपालदास नीरज यहां रहा करते थे। लेकिन इन सबके बीच नीरज नहीं होगा. अब वो यहां की नुमाइश में नहीं पुकारा जाएगा, हालांकि पुरस्कारों की श्रृंखला यथावत जारी रहेगी।


आया मायानगरी से बुलावा..

नीरज हिंदी साहित्य का वो चेहरा रहे, जिसे जनता ने खूब सराहा और उनके गीतों को गुनगुनाया भी. 60 का दशक के दौरान अलीगढ़ के ही रामलीला मैदान में पढ़ी गई इनकी एक कविता ने लोगों को अपना दीवाना बना दिया.


इसके बोल थे...


"शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब

उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब

होगा यूँ नशा जो तैयार

हाँ...

होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है"


एक मंच से गोपालदास इसे गा रहे थे और उधर इन्हें सुन रही भीड़ झूम रही थी. इसने रातों-रात नीरज को लोकप्रिय बना दिया.


इसी दौरान लखनऊ के रेडियो स्टेशन पर उनकी उस दौर की लोकप्रिय कविता 'गुबार देखते रहे' का प्रसारण किया गया, जिसे उस दौर के जाने माने फिल्मकार आर चंद्रा सुन रहे थे. वह इससे इतने प्रभावित हुए कि उनसे मिलने आ पंहुचे. और आते ही आर के चंद्रा ने इन्हें 'नई उमर की नई फसल' फ़िल्म में गीत लिखने का मौका दे दिया. फिर क्या, नीरज निकल पड़े मायानगरी के नए सफ़र पर.  


बने हिन्दी गीतों के 'राजकुमार'

अब नीरज काव्य पाठ की दुनिया से निकलकर फ़िल्मी गीतों की दुनिया में आ गए थे. 1964 में नीरज मुंबई पहुंचे और ऐसा डंका बजाया कि उनके गीत हर किसी की जुबां पर छा गए.इन्होंने 1965 में आई फिल्म 'नई उमर की नई फ़सल' में एक से बढ़कर एक गीत लिखा. उसी फ़िल्म में इस गीत को भी जगह मिली...


"स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे

कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे."


ये फ़िल्मी दुनिया का बेहद लोकप्रिय गीत हुआ, जिसने सभी के दिलों को छू लिया. इसके बाद इन्होंने एक और गीत लिखा..


"देखती ही रहो आज दर्पण न तुम,

प्यार का ये महुरत निकल जाएगा, निकल जाएगा."


इसी तरह पूरी फ़िल्म में आर चंद्रा ने नीरज की कुल 8 रचनाओं को शामिल किया.


फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली, लेकिन मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में "कारवां गुजर गया", लोकप्रियता के रास्ते पर चल पड़ा, जिसने नीरज को हिंदी गीतों का राजकुमार बना दिया.


1970 के दशक में गोपालदास को फिल्म 'चंदा और बिजली' में गाए गए 'काल का पहिया घूमे रे भईया', फिल्म 'पहचान' में 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं' और फ़िल्म 'जोकर' में 'ए भाई जरा देख के चलो' गीत के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया.

लिखे सुपरहिट गीत, लेकिन...

गोपालदास नीरज अब वो हस्ती बन चुके थे. जहां हर एक रचनाकार पहुंचना चाहता है. आर चंद्रा की फ़िल्म से नीरज की सिनेमा की दुनिया में ये पहली चहलकदमी थी. उसके बाद एक से बढ़कर एक "ऐ भाई जरा देख के चलो" , "रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन" जैसे सुपरहिट गीत नीरज ने हिंदी सिनेमा को दिए.

बावजूद इसके उन्होंने कभी अपने आपको फिल्मी गीतकार नहीं माना, और खुद कवि कहलाना ज्यादा पसंद करते थे. नीरज उन चंद कवियों में से रहे, जिनके काव्य पाठ की मांग जितनी यहां थी, उतनी ही विदेशों में भी रही. 


शुरूआत नेपाल से हुई और अमेरिका से लेकर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया तक अपने अनूठे अंदाज में काव्य पाठ से इन्होंने सबको अपना मुरीद बना लिया.


नीरज को भारत का हर वो सम्मान मिला, जिसके वह असल हकदार थे. नीरज जी ऐसे पहले शख्स थे, जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार सम्मानित किया था.


1991 में इन्हें पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया. 


गोपालदास नीरज हमेशा के लिए इस धरती को छोड़ गए लेकिन उनकी नज्में, ग़ज़लें, गीत हमेशा जिंदा रहेंगे. और शायद इसी लिए नीरज लिखते हैं कि...


जितना कम सामान रहेगा

उतना सफ़र आसान रहेगा

जितनी भारी गठरी होगी

उतना तू हैरान रहेगा..!


जब तक मंदिर और मस्जिद हैं

मुश्किल में इंसान रहेगा

'नीरज' तू कल यहाँ न होगा

उस का गीत विधान रहेगा..!

कवि सम्मेलन के मंच से किसी हिंदी सिनेमा तक पहुंचने वाले गोपाल दास नीरज की आज 96वीं जयंती है। राजकपूर से लेकर देवानंद जैसे सितारों के साथ काम करने वाले गोपालदास नीरज का फिल्मी सफर काफी रोचक रहा है। फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री के लिए जब लोग चक्कर लगाते थे, उस दौर में गोपालदास नीरज को देवानंद ने खुद काम करने का ऑफर दिया था। गोपालदास नीरज ने एक इंटरव्यू में बताया था कि देवानंद एक कवि सम्मेलन में चीफ गेस्ट बनकर आए थे। इस दौरान उनकी कविताएं सुनने के बाद उन्होंने कहा था कि एक दिन आपके साथ काम करूंगा।