कायस्थ विरोधियो से एक सवाल ?






कायस्थ शब्द से अपने ही समाज में 90%लोगों को इतनी एलर्जी क्यों ?


जैसे अब नया चलन हो गया है कायस्थ वंशवाद को छोड़कर  चित्रांश वंशज चित्रांशी वंशज अदर चित्रांशीयों ये प्रचलन नया मार्केट में घूम रहा है ! 

जो की हमारा मुल ही कायस्थ है और ये कायस्थ शब्द ईसा पुर्व के पहले मतलब वैदिक काल के पहले से ही कायस्थ है और कायस्थ संस्कृति और आस्था को मानते आ रहे है !

पर समय समय पर कुछ अत्याचारी व्यवस्था फूलता फलता गया और कायस्थ वर्ग सिकुडता गया!

पर ना ही परमपिता आदर्श श्री चित्रगुप्त जी का नाम ही भूले और ना ही संस्कृति !

पर कुछ असामाजिक तत्वों ने इन्हे भ्रमित करके कायस्थ समाज को अपने मुख्यधारा से भटकाने का भरसक प्रयास किया !

और नये जनरेसन में चित्रांश बनकर भटकने लगा,,और अपना मुल कायस्थ वंश भूलकर चित्रांश वंश में विलुप्त होते जा रहे है ये कायस्थ वंशवाद को विलुप्त करके चित्रांशी वंश में विलीन करने की शक्ति प्रदान कर रहे है जो बहुत ही दुखद है  !


सभी कायस्थ वंशजो को चित्रांस शब्द से सम्बोधित कर देना ये कहाँ की बुधिमत्ता है ! अगर भगवान् के नाम पर कुछ छन्द विच्छेद करना ही है तो किताबों का अध्ययन करके समाज को बताने का प्रयास करें!

और खुद समझने का प्रयास करें 

अब कुछ समाज के लोग है जो काल्पनिक वर्ण व्यवस्था में जाना चाहते है जो कायस्थों ने वर्ण व्यवस्था को सिरे से खारिज किया था !

पर दुखद 

अगर कायस्थ ब्राह्मण है तो शंकराचार्य क्यों नहीं बनाये जाते ?

अगर कायस्थ शूद्र है तो उन्हे आरक्षण क्यों नहीं मिलता?

अगर कायस्थ क्षत्रिय है तो क्षत्रिय क्यों नहीं !

अलग से कायस्थ कैसे ?


अगर कायस्थ वैश्य है तो इतने शिक्षित कैसे इन्हे तो बनियां गिरि करना चाहिए फिर कलम को अहमियत क्यों दिया ?


कायस्थ तो कायस्थ है जो ब्रम्ह से कायस्थ है बाकी सभी वर्ण एवं जाती इनके बाद हुई  !

कायस्थ तो मानव जाति के लिए हिन्दुत्व के लिए, अपना जाती अपना समाज को बलिदान कर दिया।! फिर भी कुंठित समाज को रास नहीं आया !

और कायस्थों को भरसक प्रयास किया है  नीचा दिखाने का!


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो स्वामी विवेकानंद जी नहीं !

कायस्थ स्वामी नरेंद्र दत्त विवेकानन्दजी होते !

अगर कायस्थ जातिवादी होते तो 

डॉ सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय संस्कृत विद्यालय नहीं खुलवाते !

डॉ सम्पूर्णानन्द बक्शी कैथी विश्वविद्यालय कायस्थ विद्यापीठ खुलवाते !


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो 

महर्षि योगी नहीं बनते !

कायस्थ महर्षि योगी बनते !


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो खुदीराम बोस नहीं होते !

कायस्थ शहिद खुदीराम बोस होते !


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नहीं!

कायस्थ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस होते 


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो 

डॉ राजेंद्र प्रसाद जी नहीं!

कायस्थ डॉ राजेंद्र प्रसाद सहाय जी होते !


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो लाल बहादुर शास्त्री नहीं !

कायस्थ लाल बहादुर श्रीवास्तवजी होते !


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो हरिवंश राय बच्चन नहीं होते !

कायस्थ हरिवंश राय श्रीवास्तवजी होते 


अगर कायस्थ जातिवादी होते तो बाल ठाकरे नहीं होते !

कायस्थ बाला साहब श्रीवास्तवजी होते !


ऐसे बहुत सारे कायस्थ महापुरूष थे,और है,जिन्होने हिन्दुत्व के लिए अपने ही जड़ को काटकर अलग हो गये,,।।


और पाखंडीयो ने वर्ण व्यवस्था को बरकरार रखने का प्रयास किया है,जिससे ब्राह्मणों का स्थान सबसे सर्वोच्च रहे,,,।।


अब भी समय है अंगूर के दाने की तरह बिखर कर मत रहे !

अंगूर के गुच्छे में लिपट कर रहेंगे जिससे हमारी संस्कृति हमारी एकता हमारा वजुद एवं किमत बरकरार रहे!

उदहारण के रुप में अंगूर के दुकान पर गुच्छे वाले अंगूर की किमत पूँछ ले और अंगूर के गुच्छे से टूटा हुआ अंगूर की किमत पूँछ ले ! 

अंगूर वही पर किमत अलग-अलग !साभार व्हाटसअप के जी