श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने आज के दिन 09 जून 1964 को देश के दुसरे प्रधानमंत्री की बागडोर संभाली थी,


जयपुर Jaipur , 9 जून ।Kayastha कायस्थ सभा प्रताप नगर सोसाइटी सागानेर,जयपुर के महासचिव युगल किशोर नेहवारिया ने  श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को श्रद्वासुमन अर्पित करते हुए कहा कि आप सादगी  ओर ईमानदारी के प्रतीक शास्त्री जी ने भारत देश को जय जवान जय किसान का नारा दिया, आपने 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत को विजय दिलाई।

  नेहवारिया ने कहा ऐसे महान महापुरूष को कहा ऐसे महान महापुरूष को  कायस्थ सभा प्रताप नगर सोसाइटी, सागानेर, श्री चित्रगुप्त नवयुवक समिति, नायकी माता जी पद यात्रा व विकास समिति कायस्थ एकता मंच परिवार, व जयपुर के कायस्थ समाज भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

Kayastaha श्री लाल बहादुर शास्त्री Shri Lal Bahadur Shastriका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को UP उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन Mughalsarai मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं।


उस छोटे.से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता। लाल बहादुर शास्त्री Varanasi वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें nanhe नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थेए यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।


बड़े होने के साथ.ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत India में British rule ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की Mahatma Gandhiमहात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने National राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।


गांधी जी ने Non-Cooperation Movement असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया थाए इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाईSttudy  छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी Mother मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।


लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ Kashi Vidya Peeth में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम शास्त्री था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया।


1927 में उनकी शादी हो गई। उनकी Wife पत्नी Lalita Devi Mirzapur ललिता देवी Mirzapur मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था। उनकीMarrige  शादी सभी तरह से पारंपरिक थी। दहेज के नाम पर एक चरखाcharakha  एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े थे। वे दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहते थे।


1930 में महात्मा गांधी ने Salt नमक Law कानून को तोड़ते हुए Dandi Yatra दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ Freedom स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।


आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आईए उससे पहले ही राष्ट्रीय संग्राम के नेता विनीत एवं नम्र लाल बहादुर शास्त्री के महत्व को समझ चुके थे। 1946 में जब Congress कांग्रेस Government सरकार का गठन हुआ तो इस ष्छोटे से डायनमो को देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया। उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे Home गृह Ministerमंत्री के पद पर भी आसीन हुए। कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। 

लाल बहादुर शास्त्री 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला Rail रेल मंत्रीय परिवहन एवं संचार मंत्रीय Commerce वाणिज्य एवं Industery  उद्योग मंत्रीय गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी। एक रेल दुर्घटनाए जिसमें कई लोग मारे गए थेए के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

 देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा।X तत्कालीन PM प्रधानमंत्रीJawaharlal Nehru  पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहाय श्शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।श्


अपने मंत्रालय के कामकाज के दौरान भी वे कांग्रेस पार्टी से संबंधित मामलों को देखते रहे एवं उसमें अपना भरपूर योगदान दिया। 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी सांगठनिक प्रतिभा एवं चीजों को नजदीक से परखने की उनकी अद्भुत क्षमता का बड़ा योगदान था।

शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी Gandhian थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्रामIndian freedom struggle के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैं।

 

शास्त्री जी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में Purushottamdas Tandon पुरुषोत्तमदास टंडन और  Pandit Govind Ballabh Pant पंडित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में Allahabadइलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टंडन जी के साथ भारत सेवक संघBharat Sevak Sangh  की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। 

 

इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरू जी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद तो शास्त्री जी का कद निरंतर बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियां चढ़ते हुए वे नेहरू जी के मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के प्रमुख पद तक जा पहुंचे। 

 

1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तीन साल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पड़ने पर उन्हें बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह India भारत के PM प्रधानमंत्री बने।

 

उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धांतिक न होकर पूरी तरह से व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे। निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो शास्त्री जी का शासन काल बेहद कठिन रहा।

 

भारत की आर्थिक समस्याओं से प्रभावी ढंग से न निपट पाने के कारण शास्त्री जी की आलोचना भी हुईए लेकिन जम्मू.कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए युद्ध में उनके द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के लिए उनकी बहुत प्रशंसा हुई ।