जानिए श्री चित्रगुप्त कथा और श्री सत्यनारायण व्रत कथा के बारे में ।

 


  मेरे दादाजी स्वर्गीय  मिट्ठन लाल जी साहब को धार्मिक पुस्तकें छपवाने का बहुत शौक था। सौ साल से भी ज्यादा पहले इनकी कई पुस्तकें छपी थी जिनमें से मुझे दो पुस्तकें श्री चित्रगुप्त कथा *और *श्री सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तकें याद है। श्री चित्रगुप्त कथा पुस्तक का प्रथम संस्करण आज से 102 साल पहले मिट्ठन लाल जी दादाजी और फतेह लाल जी मानक भंडारी सिमलोट साहब ने मिलकर प्रकाशित करवाई थी। इसके प्रथम संस्करण की अधिकांश प्रतियां बहुत जल्दी बिक गयी थी।


      इसके बाद  फतेहलाल जी साहब की अनुमति से मिट्ठन लाल दादाजी ने इस पुस्तक के कई संस्करण छपवाए। इसके अलावा भी उन्होंने अन्य कई पुस्तकें छपवाई थी जिनके नाम मुझे याद नहीं आ रहे। उनकी किताबों के प्रकाशक पुरानी मंडी के फूलचंद बुक सेलर थे । 


      मेरे पास उनकी लिखी कोई भी किताब नहीं थी। मैं उनकी लिखी श्री चित्रगुप्त व्रत कथा पाने को व्याकुल था। मैं 2015 में फूलचंद बुक सेलर की दुकान पर गया था तथा उनसे पूछा, " क्या आपके पास पुरानी धार्मिक किताबों के ब्लॉक्स पड़े है?" मैंने किताब की डिटेल उन्हें बताई मगर उन्होंने कोई रूचि नहीं दिखायी और मना कर दिया।


उसके बाद 2016 में जयपुर में मैंने स्वयं श्री चित्रगुप्त जी पर एक किताब छपवायी। मगर अभी भी मैं उनकी श्री चित्रगुप्त कथा, श्री सत्यनारायण कथा और अन्य पुस्तकें पाने का इच्छुक था।


        इस संदर्भ में  मेरे साथ एक अदभुत घटना 2018 में घटित हुई। यह घटना मेरी पुस्तक सफर रिश्तों का के विमोचन के समय की है। पुस्तक विमोचन के कुछ दिन पहले मैं पुरानी मंडी किसी काम से गया था।सहसा मेरी नजर फूलचंद बुकसेलर की दुकान पर पड़ी तो मुझें अचरज हुआ की इस नाम से मिलती जुलती तीन दुकानें थी। मैं सोच में पड़ गया की किस दुकान पर जाऊं। मैं फूलचंद बुक सेलर की पहली दुकान पर गया। दुकान पर एक महिला बैठी थी। मैंने उससे श्री चित्रगुप्त जी की कथा की किताब मांगी। उन्होंने मुझें मना कर दिया। मैंने उससे पूछा ये तीन तीन दुकानें कैसे हो गयी?उसने बताया परिवार में बंटवारा हो गया है। मैंने फिर उससे पूछा, "आपकी पुरानी दुकान कौन सी है?" उसने बीच वाली दुकान की तरफ इशारा किया। 


मैं वैसे तो निराश ही था। किताब मिलने के कोई आसार नहीं थे पर फिर भी दिल ने कहा एक बार कोशिश तो करके देखो। 


मैं पुरानी दुकान पर गया।वहां एक प्रौढ़ व्यक्ति बैठा था और एक करीब 25 साल उम्र का लड़का खड़ा हुआ था। मैंने  दुकान पर जाकर पूछा, " श्री चित्रगुप्त जी की कथा की किताब है?" लड़के ने बिना कुछ जवाब दिए अपनी जगह पर खड़े-खड़े हाथ ऊपर करके एक किताब निकाल कर मेरे हाथ में दे दी। 


मुझें विश्वास नहीं हुआ कि यह वहीं किताब है जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी। उसने मेरे दादाजी की 100 साल पहले लिखी किताब का प्रथम संस्करण मेरे हाथ में रख दिया। मैं किताब को देख रहा था। मेरी आंखों में आंसू भर आये। पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ की मेरे हाथों में वहीं किताब है। मुझें आश्चर्य इसलिए भी हुआ क्योंकि उसने ऐतिहासिक धरोहर वाली किताब मात्र दो सेकिंड में निकाल कर दे दी। क्या 100 साल पुरानी किताब जिसकी सम्भावना एक प्रतिशत भी नही हो भला इतनी आसानी से मिल सकती है? 


      मुझे लगा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा। इतने में दुकानदार बोला, "भाई साहब क्या हुआ? मेरे पास तो बस यहीं किताब है"। मैंने पूछा, "क्या आपके पास इसका ब्लॉक रखा है?"
      दुकानदार ने कहा, "ब्लॉक तो ठिकाने नहीं होगा मगर आप को ब्लॉक का क्या करना है?"
मैंने कहा, "मैं ये किताब छपवाना चाहता हूँ।"
         दुकानदार ने कहा, "भाई साहब ब्लॉक आउटडेटेड हो गए हैं। अब उससे छपाई नहीं हो सकती। डिजिटल जमाना आ गया है।"मेरी आँखें खुली रह गयी जब उसने पूछा, "कितनी किताबें छपवानी है? अगर सौ प्रतियां तक छपवानी है तो मेरे पास रखी है।"मैंने उससे और प्रतियां लाने को कहा।उसने करीब पचास कापियां मेरे सामने रख दी। मैंने उसमें से सही हालत की करीब 20 पुस्तकें निकाल ली।उसने एक प्रति पांच रुपए की दी। किताब मेरे लिए बहुत अमुल्य थी। अगर वो 20-25 रुपये भी मांगता तो भी दे देता।मेरा दिल खुशी से भरा था। 


मेरी पुस्तक सफर रिश्तों का के विमोचन के बाद अपने रिश्तेदारों को दी और उन्हें किताब प्राप्त करने की पूरी कहानी बताई तो सभी की आंखे नम हो गयी। मेरी जिंदगी धन्य हो गयी। 100 साल से ज्यादा पुरानी किताब की बाजार में एक नहीं बल्कि कई प्रतियां मिल जाए यह बहुत बड़ी बात है।आज भी यह किताब शायद फूलचंद बुक सेलर की बीच वाली दुकान पर उपलब्ध हो।

 साभार  प्रहलाद नारायण माथुर ,अजमेर ।