भारत मां की शान हिंदी"

 


हिंदी मस्तक पर बिंदी सम 

भारत मां की शान है,
देश नहीं परदेशों में भी, 
हिंदी की पहचान है।

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हिंदी से आकर मिलती हैं 
सभी प्रांतों की भाषाऐं,
एक नदी की यात्रा सम है
हिंदी एक अनेक धाराऐं।

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हिंदी को मिलकर चलने का 
सबके संग वरदान है,
मस्तक पर सम बिंदी हिंदी
भारत मां की शान है।

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कई पड़ावों भरी यात्रा,
जो अनेक मोड़ों से गुजरी
सभी पीढ़ियां बनीं साक्षी,
‌इन राहों से जो भी गुजरीं।

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हिंदी बनी ज्ञान की गंगा 
जहां जहां से है ये गुजरी,
शिक्षा का है क्षेत्र अनूठा
चाहे जो भी भर लें अंजुरी।

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हिंदी का है सफर पुराना, 
इसे धर्म ग्रंथों ने माना,
इतिहासज्ञों ने भी अपनाकर
सदियों का इतिहास है जाना।

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हिंदी जन जन की भाषा है
सभी ने इसको दिया मान है,
किया मान इसका जिसने भी
पाया जग में नाम है।

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हिंदी प्राणों में बसती है,
ये भारत की जान है,
मस्तक पर सम बिंदी हिंदी
भारत मां की शान है।

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हिंदी व्यावहारिक भाषा है
सर्व  जगत को मान्य है,
पढ़ालिखा सीखा जिसने भी
उसने बढ़ाया मान है।

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देश विदेश में जब शोधार्थी,
ज्ञान वृद्धि को जाते है
सुविधाऐं पढ़नेलिखने की
हिंदी में भी अब पाते हैं।

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हिंदी इतनी सरल है भाषा
सभी इसे अपनाते हैं,
सहयोगी पगपग पर इसको 
ज्ञानार्जन में पाते हैं।
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ऐसी सब करते हैं आशा,
बने हिंदी विज्ञान की भाषा
बढ़ेगा जब हिंदी मेंअध्ययन,
बनेगी हिंदी वैश्विक भाषा।

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हिंदी मस्तक पर सम बिंदी,
भारत मां की शान है, 
मान किया जिसने हिंदी का
पाया जग में नाम है।
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: प्रदीप माथुर
        अलवर