ख्वाहिशें
बचपन में लौट जाने की ख्वाइश, सबकी सदा ही रहती हैं भारी ! बचपन का वह निश्छल जीवन, अब की आपा-धापी पर भारी !!! हे मन यूंही होती नहीं है, लौटने की ये इच्छा न्यारी !!!! अब तो सब हैं तंग -परेशां, जीवन जीना है लाचारी !!!!! चित्रांश प्रदीप माथुर अलवर(राज.)